मार्तण्ड सूर्य मंदिर से, सूर्य को समर्पित मार्तण्ड सूर्य मंदिर कश्मीर के दक्षिण में अनंतनाग से 60 किमी की दूरी पर स्थित एक पठार के ऊपर बना हुआ है यह अनंतनाग से पहलगाम के रास्ते मे मार्तंड नामक स्थान पर बना है जिसका वर्तमान नाम मटन है इस मंदिर से पूरी कश्मीर घाटी को देखने का दावा किया जाता है।
मंदिर की खूबसूरती इसकी वास्तुकला है भारत मे ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे यह अपनी बेहतरीन वास्तुकला से जाना जाता है मंदिर के मुख्य द्वार तथा स्तम्भों की वास्तु-शैली रोम की डोरिक शैली से कुछ कुछ मिलती-जुलती है। इस मंदिर को बनाने के लिए चुने के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है पश्चिम की ओर मुड़े होने के कारण हिंदू धर्म-ग्रंथों में इसे विशेष महत्तव दिया गया है। मार्तंड सूर्य मंदिर को कश्मीरी वास्तु शैली का अनुपम, एवं संभवत: एकमात्र उदाहरण माना जाता है।
इसका निर्माण मध्यकालीन युग मे 7वीं से 8 वीं शताब्दी के दौरान हुआ था चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार कश्मीर के इतिहास पर अगर नजर डाले तो कश्मीर में कार्कोट राजवंश का शासन हुआ था जिसके राजा ललितादित्य मुक्तपीड़ को कश्मीर के सबसे महान राजाओं में माना जाता है। ललितादित्य मुक्तपीड़ ने प्रजा की आर्थिक स्थिति तो मजबूत बनाई ही थी बल्कि उन्होंने कई निर्माण कार्य भी करवाए थे जिनमे मार्तंड का सूर्य मंदिर सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं प्रमुख माना जाता ह जब सूरज की पहली किरण इस मंदिर को छूती थी, तब यहां के राजा अपने पूजा-पाठ की शुरुआत करते थे।
मंदिर मे नियमित अंतराल पर 84 स्तम्भ बनाए गए है चारों तरफ से बर्फ से ढकें पहाड़ों के बीच घिरा यह मंदिर एक तरह से कुदरत का Karishma ही माना जाता है यह मंदिर 60 फुट लम्बा और 38 फुट चौड़ा था। इसके चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष वर्तमान में उपस्थित हैं वर्तमान में खंडहर हो चुके इस मंदिर की ऊंचाई भी अब 20 फुट ही रह गई है। मंदिर में तत्कालीन बर्तन आदि अभी भी मौजूद हैं।
कश्मीरियों को चार सौ साल बाद मार्तंड के इस सूर्य मंदिर की याद फिर से आ गई है। चौदह सौ साल पुराने इस मंदिर में एक बार फिर आहुति डालने की तैयारियाँ शुरू कर दी गई हैं।
इतना जरूर है खंडहरों में तब्दील हो चुके इस मंदिर मे आज भी इतनी शक्ति है की सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित कर ही लेता है। मंदिर के पास मे एक सरोवर भी हैं, जिस मे आज भी रंग बिरंगी मछलियां तैरती हुई नजर आती हैं।
विडिओ देखने के लिए नीचे 👇दिए गए लिंक पर क्लिक करें
https://youtu.be/qGVkrtajRc4
मंदिर की खूबसूरती इसकी वास्तुकला है भारत मे ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे यह अपनी बेहतरीन वास्तुकला से जाना जाता है मंदिर के मुख्य द्वार तथा स्तम्भों की वास्तु-शैली रोम की डोरिक शैली से कुछ कुछ मिलती-जुलती है। इस मंदिर को बनाने के लिए चुने के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है पश्चिम की ओर मुड़े होने के कारण हिंदू धर्म-ग्रंथों में इसे विशेष महत्तव दिया गया है। मार्तंड सूर्य मंदिर को कश्मीरी वास्तु शैली का अनुपम, एवं संभवत: एकमात्र उदाहरण माना जाता है।
इसका निर्माण मध्यकालीन युग मे 7वीं से 8 वीं शताब्दी के दौरान हुआ था चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के अनुसार कश्मीर के इतिहास पर अगर नजर डाले तो कश्मीर में कार्कोट राजवंश का शासन हुआ था जिसके राजा ललितादित्य मुक्तपीड़ को कश्मीर के सबसे महान राजाओं में माना जाता है। ललितादित्य मुक्तपीड़ ने प्रजा की आर्थिक स्थिति तो मजबूत बनाई ही थी बल्कि उन्होंने कई निर्माण कार्य भी करवाए थे जिनमे मार्तंड का सूर्य मंदिर सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं प्रमुख माना जाता ह जब सूरज की पहली किरण इस मंदिर को छूती थी, तब यहां के राजा अपने पूजा-पाठ की शुरुआत करते थे।
मंदिर मे नियमित अंतराल पर 84 स्तम्भ बनाए गए है चारों तरफ से बर्फ से ढकें पहाड़ों के बीच घिरा यह मंदिर एक तरह से कुदरत का Karishma ही माना जाता है यह मंदिर 60 फुट लम्बा और 38 फुट चौड़ा था। इसके चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष वर्तमान में उपस्थित हैं वर्तमान में खंडहर हो चुके इस मंदिर की ऊंचाई भी अब 20 फुट ही रह गई है। मंदिर में तत्कालीन बर्तन आदि अभी भी मौजूद हैं।
कश्मीरियों को चार सौ साल बाद मार्तंड के इस सूर्य मंदिर की याद फिर से आ गई है। चौदह सौ साल पुराने इस मंदिर में एक बार फिर आहुति डालने की तैयारियाँ शुरू कर दी गई हैं।
इतना जरूर है खंडहरों में तब्दील हो चुके इस मंदिर मे आज भी इतनी शक्ति है की सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित कर ही लेता है। मंदिर के पास मे एक सरोवर भी हैं, जिस मे आज भी रंग बिरंगी मछलियां तैरती हुई नजर आती हैं।
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