यह
तो आप जानते ही है की दुनिया मे चाय के बाद सबसे ज्यादा पिए जाने वाली चीज
कॉफी है कॉफी की खोज इथिओपिया के कफ़ा प्रांत मे रहने वाले एक बकरी चराने वाले
गड़रिये की बकरियों ने की थी कालदी नाम का वह चरवाहा रोज अपनी बकरियों को पहाड़ पर
चराने लेकर जाता था रोजाना लौटते वक़्त बकरियों मे और
कालदी मे वह चुस्ती और फुर्ती नहीं होती थी जो पहाड़ पर चढ़ते वक़्त होती थी एक बार कालदी बकरियों को पहाड़ पर ज्यादा ऊंचाई पर ले गया जहां से लौटते वक़्त उसने देखा कि बकरिया झाड़ियों मे घुसकर उनमें लगी लाल रंग की बेरियों को खाने लगी जिसे देख वह थोड़ी देर वहीं ठहर गया परंतु थोड़ी देर बाद उसने देखा की बकरिया उछाल कूद करने लगी और उनमे गज़ब की फुर्ती आ गई जबकि रोजाना वे लौटते वक़्त बहुत सुस्त हो जाती थी कालदी ने सोचा की उन लाल बेरियों को खाने के बाद ही बकरियाँ ऐसा करने
लगी है तब उसने इस बात को पक्का करने के लिए खुद उन बेरियों को खाकर देखा तो उसे खुद मे भी चुस्ती और फुर्ती महसूस होने लगी। फिर क्या था कालदी उन बेरियों को तोड़कर अपने साथ ले आया पहले तो वह उन्हे रोजाना ऐसे ही खाने लगा बाद मे वह उन्हे उबालकर उनका काढ़ा बनाकर पीने लगा। धीरे धीरे यह बात पूरे इथिओपिया मे फैल गई और देखते ही देखते इथिओपिया मे इसका व्यापार होने लग गया और फिर दूसरे देशों मे भी इसका व्यापार प्रचलन मे आ गया। शुरुआत में इथिओपिया से कॉफी का चलन अरब मे पहुंचा और 13वीं शताब्दी में अरब में वह बेहद लोकप्रिय पेय बन गया। अरबवासी कॉफी की बेरियों का निर्यात करने लगे, लेकिन बीज या पौधे किसी को नहीं देते थे। उन्हें डर था कि ऐसा करने से उनका कॉफी का व्यापार ठप्प हो जाएगा इसलिए सिर्फ भुनी हुई कॉफी बीन्स का व्यापार किया जाता था 1670 ईस्वी मे भारत मे भी कॉफी का व्यापार बहुत जोरों पे था उस समय बाबा बुदान जो की एक सूफी संत थे हज की यात्रा पर गए थे और लौटते समय वह अपने साथ शिप मे कॉफी के 7 बीज चुरा के ले आए और उन्होंने कर्नाटक मे इसके पोधे लगाए और तब से भारत मे भी कॉफी का उत्पादन किया जाने लगा आज भारत कॉफी के उत्पादन और निर्यात मे तीसरे नंबर पर है भारत मे दुनिया की सबसे महंगी कॉफी का उत्पादन भी किया जाता है जिसे Kopy Luwak या सिवेट कॉफी के नाम से जाना जाता है जिसकी कीमत विदेशों मे 20 से 25 हजार रुपये किलो है सिवेट कॉफी बनाने की विधि थोड़ी अजीबो गरीब है कॉफी की कच्ची बेरीज़ सिवेट बिल्ली को खिलायी जाती है सिवेट बिल्ली कॉफी की चेरी को खाती है जिसका गूदा वह पचा लेती है लेकिन गूदे के अंदर के बीज को वह पचा नहीं पाती और यही बीन बिल्ली के पोटी करते समय साबुत निकल जाता है। जिसे धोकर और फिर भूनकर कॉफी बनायी जाती है खाड़ी देशों मे और यूरोप मे इसे बड़ी स्वादिष्ट और पोषक माना जाता है इसलिए इसके एक कप कॉफी की कीमत 11000 रुपये तक होती है
कालदी मे वह चुस्ती और फुर्ती नहीं होती थी जो पहाड़ पर चढ़ते वक़्त होती थी एक बार कालदी बकरियों को पहाड़ पर ज्यादा ऊंचाई पर ले गया जहां से लौटते वक़्त उसने देखा कि बकरिया झाड़ियों मे घुसकर उनमें लगी लाल रंग की बेरियों को खाने लगी जिसे देख वह थोड़ी देर वहीं ठहर गया परंतु थोड़ी देर बाद उसने देखा की बकरिया उछाल कूद करने लगी और उनमे गज़ब की फुर्ती आ गई जबकि रोजाना वे लौटते वक़्त बहुत सुस्त हो जाती थी कालदी ने सोचा की उन लाल बेरियों को खाने के बाद ही बकरियाँ ऐसा करने
लगी है तब उसने इस बात को पक्का करने के लिए खुद उन बेरियों को खाकर देखा तो उसे खुद मे भी चुस्ती और फुर्ती महसूस होने लगी। फिर क्या था कालदी उन बेरियों को तोड़कर अपने साथ ले आया पहले तो वह उन्हे रोजाना ऐसे ही खाने लगा बाद मे वह उन्हे उबालकर उनका काढ़ा बनाकर पीने लगा। धीरे धीरे यह बात पूरे इथिओपिया मे फैल गई और देखते ही देखते इथिओपिया मे इसका व्यापार होने लग गया और फिर दूसरे देशों मे भी इसका व्यापार प्रचलन मे आ गया। शुरुआत में इथिओपिया से कॉफी का चलन अरब मे पहुंचा और 13वीं शताब्दी में अरब में वह बेहद लोकप्रिय पेय बन गया। अरबवासी कॉफी की बेरियों का निर्यात करने लगे, लेकिन बीज या पौधे किसी को नहीं देते थे। उन्हें डर था कि ऐसा करने से उनका कॉफी का व्यापार ठप्प हो जाएगा इसलिए सिर्फ भुनी हुई कॉफी बीन्स का व्यापार किया जाता था 1670 ईस्वी मे भारत मे भी कॉफी का व्यापार बहुत जोरों पे था उस समय बाबा बुदान जो की एक सूफी संत थे हज की यात्रा पर गए थे और लौटते समय वह अपने साथ शिप मे कॉफी के 7 बीज चुरा के ले आए और उन्होंने कर्नाटक मे इसके पोधे लगाए और तब से भारत मे भी कॉफी का उत्पादन किया जाने लगा आज भारत कॉफी के उत्पादन और निर्यात मे तीसरे नंबर पर है भारत मे दुनिया की सबसे महंगी कॉफी का उत्पादन भी किया जाता है जिसे Kopy Luwak या सिवेट कॉफी के नाम से जाना जाता है जिसकी कीमत विदेशों मे 20 से 25 हजार रुपये किलो है सिवेट कॉफी बनाने की विधि थोड़ी अजीबो गरीब है कॉफी की कच्ची बेरीज़ सिवेट बिल्ली को खिलायी जाती है सिवेट बिल्ली कॉफी की चेरी को खाती है जिसका गूदा वह पचा लेती है लेकिन गूदे के अंदर के बीज को वह पचा नहीं पाती और यही बीन बिल्ली के पोटी करते समय साबुत निकल जाता है। जिसे धोकर और फिर भूनकर कॉफी बनायी जाती है खाड़ी देशों मे और यूरोप मे इसे बड़ी स्वादिष्ट और पोषक माना जाता है इसलिए इसके एक कप कॉफी की कीमत 11000 रुपये तक होती है
कॉफी की खोज किसने की