पृथविराज चौहान की पूरी कहानी
भारत
भूमि पर अनेकों महान वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है जिनका जिक्र हम अक्षर किताबों
मे पढ़ते है उनमे से एक नाम ऐसा भी है जिनका नाम जुबां पर आते ही शरीर मे मानो
बिजली सी रौंद जाती है पृथविराज चौहान,
पृथविराज चौहान ऐसे महान वीर योद्धा थे जिन्होंने मात्र 12
वर्ष की उम्र मे ही बिना
किसी हथियार के शेर को भी मात दे डाली थी उन्होंने शेर का जबड़ा ऐसे फाड़ डाला था
मानो किसी कागज के टुकड़े कर डाले हो।
भारतीय
इतिहास मे पृथविराज, चौहान वंश के आखिरी हिन्दू क्षत्रिय राजा थे जिन्होंने 12 वीं शताब्दी के
उत्तरार्ध में अजमेर और दिल्ली पर राज्य किया था वे भारतेश्वर, सपादलक्षेश्वर, हिंदू सम्राट तथा राय पिथौरा
जैसे नामों से भी जाने जाते हैं।
उनका जन्म 1149 में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान
के यहां विवाह के 12 वर्ष के पश्चात गुजरात में हुआ था उनकी माता
का नाम कर्पूरी देवी था अतः बहुत दिनों तक राज्य के उतराधिकारी का जन्म ना होने की
वजह से राजतन्त्र के लिए षड्यन्त्र रचे जाने लगे थे परंतु पृथ्वी के जन्म लेते ही
राजतंत्र के लिए आंतरिक शत्रुओं के षड्यन्त्र धरे के धरे रह गए, अब वे पृथ्वी को
मारने के षड्यन्त्र रचने लगे। बचपन से ही उनका जीवन के लिए संघर्ष शुरू हो गया था
उनके पिता सोमेश्वर को पृथ्वी के खिलाफ षड्यंत्रों का आभास हो गया था अतः उन्होंने
पृथ्वी को बचपन से ही युद्धनीति सिखाना शुरू कर दिया। पृथविराज चौहान बचपन से ही एक कुशल एवं
महान योद्धा थे, उन्होंने
अपने बचपन में ही योद्धा बनने के सभी गुण सीख लिए थे। वे मागधी, अपभ्रंश, प्राकृत, शौरसेनी, पैशाची
तथा संस्कृत जैसी 6 भाषाओं मे निपुण थे इसके अलावा उन्हे चिकित्सा शास्त्र, गणित, मीमांसा,
वेदांतों और पुराणों का भी ज्ञान था। बचपन से ही पृथ्वी के एक
घनिष्ठ मित्र थे जिनका नाम चंद्रबर्दायी था जो आगे चलकर उनके राजकवी बने, चंदरबर्दायी
द्वारा लिखित पृथ्वीराजरासो के अनुसार पृथविराज
चौहान ने आबू पर आक्रमण कर चालुक्य वंश के भीमदेव द्वितीय को पराजित कर आबू पर
अपना आधिपत्य जमा लिया जिससे भीमदेव बहुत आक्रोश मे आ गया था
दूसरी तरफ दिल्ली के महाराज अनंगपाल ने पृथ्वी के
पराक्रम से प्रभावित होकर सोमेश्वर को यह प्रस्ताव भेजा की वे दिल्ली की बागड़ोर पृथ्वी
के हाथों मे सोपना चाहते है जिससे सोमेश्वर भी सहमत हो गए थे और जब पृथ्वी महाराज अनंगपाल
से मिलने दिल्ली गए हुए थे
तब भीमदेव ने अजमेर पर अचानक आक्रमण कर दिया जिस युद्ध
मे सोमेश्वर वीरगति को प्राप्त हो गए।
पिता
की मृत्यु के बाद पृथ्वी ने 13 वर्ष की उम्र में अजमेर के राजगढ़ की गद्दी संभाली।
कुछ दिन पश्चात पिता की मृत्यु का बदला
लेने के लिए उन्होंने गुजरात पर आक्रमण कर भीमदेव को मौत के घाट उतार दिया अतः
उसका सिर धड़ से अलग कर दिया बाद मे भीमदेव के पुत्र वनराज को गुजरात की गद्दी पर
बैठा कर अजमेर वापिस लौट आए। उसके
बाद उन्होंने दिग्विजय अभियान आरंभ करके अपनी वीरता और साहस का बड़ा ही
सुन्दर और अद्भुत परिचय दिया अतः वह एक के बाद एक युद्ध
जीतते चले गए और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए जिसमे उनके घनिष्ठ
मित्र चंद्रबर्दायी राजकवी होने के साथ साथ हर एक युद्ध मे भी उनके साथ रहते थे
उसी दौरान भारत के उतरी भाग मे मुहम्मद शहबुद्दीन
गौरी अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अनेक जनपदों को छल से या बल से
पराजित कर रहा था। उसकी शासन विस्तार और धर्म विस्तार की नीति के फलस्वरूप 1175 से
पृथविराज का गौरी के साथ सङ्घर्ष आरंभ हुआ। अतः पृथविराज चौहान और गौरी के बीच
बहुत से युद्ध हुए, जिनमें पृथ्वी ने गौरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया
क्योंकी वह हर बार पृथ्वी के सामने अपना शीश झुका लेता था वह अच्छी तरह जानता था
की एक राजपूत राजा ना तो अपना शीश किसी के सामने झुकाता है और यदि कोई अपना शीश
उनके सामने झुका ले तो ना ही वो उन्हे मारता है गौरी अपने प्राणों की रक्षा के लिए
हर बार यही चाल चल जाता था पृथ्वी महाभारत से चले आ रहे युद्ध के सभी नियमों का
पालन करते हुए अपनी वीरता और सुद्रढ युद्धनीति के जरिए एक के बाद एक युद्ध जीतते
चले जा रहे थे उन्होंने चंदेलों, बुंदेलखंड, महोबा समेत कई छोटे-छोटे राज्य अर्जित कर लिए थे और महाराज अनंगपाल की
इच्छापूर्वक उन्होंने दिल्ली का शासन भी संभाल लिया था जिससे कन्नौज के राजा जयचंद
पृथ्वी से बहुत घ्रणा करते थे उसी दौरान कनौज मे पन्नाराय नामक एक बहुत प्रसिद्ध
चित्रकार हुआ करते थे जो बड़े बड़े राजा महाराजाओं के चित्र बनाया करते थे राजा
जयचंद की पुत्री संयोगिता ने भी अपना एक चित्र उनके पास बनवाया और जिस दौरान वह
अपना चित्र बनवा रही थी उसी दौरान उन्होंने पन्नाराय के पास एक बहुत ही सुन्दर
पुरुष का चित्र देखा जिस पर वह उसी क्षण मोहित हो गई और मन ही मन उनसे विवाह करने
का निश्चय कर लिया वह चित्र था पृथविराज चौहान का अतः संयोगिता ने चित्रकार पन्नाराय
से आग्रह किया की वह उनका चित्र भी पृथविराज को दिखाए।
और जब पन्नाराय ने दिल्ली
जाकर पृथ्वी को संयोगिता का चित्र दिखाया तो वह भी संयोगिता पर मोहित हो गए और
दोनों मे प्रेम हो गया जिसका पता किसी तरह राजा जयचंद को भी चल गया और उन्होंने
अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा कर दी। एक तरफ राजकुमारी के मन में पृथविराज
के प्रति प्रेम था, तो वहीं दूसरी तरफ पिता जयचंद पृथविराज
की सफलता से अत्यंत भयभीत थे और उनके गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखते थे, इसलिए उन्होंने स्वयंवर में पृथ्वी को निमंत्रण नहीं भेजा अतः स्वयंवर के
दिन जयचंद ने पृथविराज का अपमान करने के उद्देश्य से स्वयंवर कक्ष के बाहर मुख्य
द्वार पर उनकी मूर्ति को इस तरह लगवा दिया, मानो जैसे कोई
द्वारपाल खड़ा हो। और स्वयंवर के समय जब संयोगिता ने देखा की उनके पिता ने पृथ्वी
को सभा मे ही नहीं बुलाया बल्कि उनके पुतले को दरबान के स्थान पर खड़ा किया है इससे
संयोगिता अपने पिता से बहुत नाराज हो गई और उन्होंने मन मे यह ठान लिया की वह पृथ्वी
के पुतले को ही वरमाला पहनाएँगी और जैसे ही वह पुतले की तरफ बढ़ती है पृथविराज
स्वयं वहाँ उपस्थित हो जाते है और संयोगिता उनके गले मे वरमाला डाल देती है जिसे
देख राजा जयचंद बहुत क्रोधित हो जाते है और जैसे ही वह अपने सैनिकों को पृथ्वी को
बंदी बनाने का आदेश देते है पृथविराज संयोगिता को अपने घोड़े पर बैठा कर तीव्र गति
से निकल जाते है
स्वयंवर मे आए दूसरे राजपूत योद्धा भी पृथ्वी से
रुस्ठ हो जाते है चुकि वे भी राजकुमारी संयोगिता से विवाह की इच्छा लेकर स्वयंवर
मे आए थे अतः वे भी राजा जयचंद को पृथ्वी से बदला लेने के लिए उकसाते है जयचंद को
तो मौके की तलाश थी ही और अब वह यह भी जान गए थे की कोई भी राजपूत शासक पृथ्वी की
सहायता के लिए मैदान मे नहीं आएगा अतः वह इस बात से भी वाकिफ़ थे की वह अन्य
राजपूतों के साथ मिलकर भी पृथ्वी का मुकाबला नहीं कर सकते और वह गौरी के साथ जाकर
मिल जाते है जयचंद ने राजपूतों के सभी भेद खोल दिए और गोरी की खुल कर मदद की। गौरी
को भी एक बार फिर पृथ्वी से बदला और भारतवर्ष पर शासन करने का अवसर मिल जाता है और
1192 ईस्वी मे एक बार फिर सरहिंद के किले के पास तराइन नामक स्थान पर वह पृथविराज
चौहान से आमना सामना करता है जहां वह 17 बार पृथ्वी से मुह की खा चुका था और कभी
भाग जाता था कभी पृथ्वी के पैरों मे गिरकर क्षमा मांग लेता था परंतु इस बार जयचंद
जैसे देशद्रोही ने पृथ्वी की सेना और युद्धनीति के अधिकतर भेद गौरी को बता दिए थे पृथ्वी
की सेना मे 300 हाथी और 300000 सैनिक थे जिनमे बहुत से घुड़सवार भी थे हालांकि गौरी
का सैन्य बल पृथ्वी से कम था परंतु घुड़सवार अधिक थे और कुशल भी थे जिन्होंने युद्ध
आरंभ होते ही पृथ्वी की सेना मे हाथियों को चारो तरफ से घेर लिया और वाणों की वर्षा
कर दी जिससे हाथी घायल हो गए और अपनी ही सेना को रुँधने लगे परंतु पृथ्वी की सेना
ने आत्मबल नहीं खोया और वे साहस और वीरता से लड़ते रहे अतः युद्ध भूमि पर एक समय
ऐसा आ गया की पृथ्वी की सेना गौरी की सेना पर हावी होने लगी जिसे देख गौरी ने अपनी
एक नई चाल चली जैसा की जयचंद ने उसे बता दिया था कि राजपूत सेना रात्रि के समय
निर्भय होकर विश्राम करती है और यही समय है जब वह पृथ्वी को बंदी बना सकता है दिन
मे वह उसे नहीं हरा सकता। अतः गौरी अपनी कायरता दिखाते हुए राति के समय पृथ्वी की
सेना पर अचानक आक्रमण कर देता है और पृथविराज चौहान उर चंद्रबरदायी को बंदी बना
लेता है और कुतुबउद्दीन ऐबक को दिल्ली और अजमेर का सिबेसलार बनाकर वापिस अफगान लौट
जाता है जहां वह पृथ्वी और चंद्रबरदायी को बहुत सी शारीरिक यातनाए देता है और पृथ्वी
को कहता है की यदि वह अपना शीश उसके सामने झुका लेगा त वह उन्हे आजाद कर देगा
परंतु पृथविराज चौहान एक क्षत्रिय और राजपूत राजा थे जिन्हे मरना गवांरा था लेकिन
झुकना कतई मंजूर नहीं था जिससे क्रोधित होकर गौरी गर्म सलांखो से उनकी आंखे फुड़वा
देता है और उन्हे कारागार मे डलवा देता है जहां चंद्रबरदायी पृथ्वी के साथ मिलकर
गौरी को मारने की योजना बनाते है और गौरी के कानो तक यह खबर भिजवाते है की पृथ्वी
सिर्फ आवाज सुनकर तीर से लक्षय को भेद सकते है गौरी ने इस कला के बार मे पहले भी
सुना था परंतु देखा नहीं था अतः वह इस कला का प्रदर्शन करने के लिए पृथ्वी को
दरबार मे बुलवाते है गौरी जानता था की पृथ्वी तीर उस पर भी चला सकता है
इसलिए उसने
अपना सिंहासन बहुत ऊंचे स्थान पर लगवाया था प्रदर्शन आरंभ करने का आदेश देते ही चंद्रबर्दायी
ने एक दोहा पढ़ा
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान.
इस दोहे को बोलकर चंदबरदाई ने पृथविराज चौहान को
संकेत दे दिया की गौरी कितनी दूरी पर है और जैसे हीं दोहा सुनकर मोहम्मद गोरी ने वाह
शब्द बोला, वैसे हीं अपनी दोनों आंखों से अंधे हो चुके पृथविराज
चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार दिया मोहम्मद गोरी के मरते हीं पृथविराज
चौहान और चंद्रवरदाई ने भी शत्रुओं के हाथों मरने की बजाय एक-दूसरे की हत्या कर दी।
चंद्रबर्दायी ने मरते समय तक आपने मित्र से मित्रता निभायी और जब यह खबर महारानी
संयोगिता तक पहुंची तो वह भी एक वीरांगना की तरह सती हो गई।
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