स्त्रियाँ
कभी अपने मन का भेद छिपाकर नहीं रख पाती चाहे कितनी भी कौशिश करे परंतु वे
किसी न किसी को मन का भेद बता ही देती है ऐसा स्त्रियाँ स्वाभाविक नहीं करती है
बल्कि श्राप की वजह से करती है जो की पूरी स्त्री जाती को धर्मराज युधिष्ठिर ने
दिया था उस से पहले स्त्रियों से मन का भेद लेना बड़ा ही मुश्किल होता था स्त्रियों
की इस श्राप की वजह माता कुंती है जिन्होंने कभी किसी को यह नहीं बताया था की
विवाह से पूर्व उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया था जिसको उन्होंने गंगा को समर्पित
कर दिया था
और जब उन्हे यह ज्ञात हो गया की कर्ण ही उनका वह पुत्र है तो माता कुंती ने वह भेद अपने मन मे रखा और उनकी इसी भूल की वजह से ही पूरी स्त्री जाती को श्रापित होना पड़ा।
कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध मे जब अर्जुन
द्वारा कर्ण का वध कर दिया गया तो कर्ण की मृत्यु के पश्चात माता कुंती अपने आँसू
रोक न सकी और जब युधिष्ठिर ने उनसे पूछा की एक शत्रु की मृत्यु पर वह शोक प्रकट
क्यों कर रही है तब चुकि पुत्र की मृत्यु पर उनका मन दुख के कारण बड़ा ही व्याकुल
हो गया था जिस से वह अपने मन का भेद ओर अधिक नहीं छुपा सकी और उन्होंने युधिष्ठिर
को बताया की कर्ण उनका ज्येष्ठ भ्राता था और वह विवाह से पूर्व भगवान सूर्यदेव ने
उन्हे वरदान स्वरूप दिया था
परंतु युद्ध के उपरांत भगवान सूर्य देव और मैंने कर्ण
को यह बता दिया था की वह सूत पुत्र नहीं बल्कि सूर्य और कुंती पुत्र है तब उसने
कहा की हे माते अब मै मित्रता की वजह से विवश हूँ और साथ ही उसने यह भी कहा था की
उनके भाइयों को यह कदाचित नहीं बताया जाए ताकि युद्ध भूमि मे उनको ये प्रतीत न हो
की वे अपने ज्येष्ठ भ्राता से युद्ध कर रहे है माता कुंती से यह सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर को बड़ा ही दुख हुआ और उन्होंने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। अतः युधिष्ठिर अनजाने मे भाइयों द्वारा भाई की मृत्यु किए जाने से बड़े ही व्याकुल हो गए थे और उसी व्याकुलता मे उन्होंने पूरी स्त्री जाती को यह श्राप दे दिया की वे कभी कोई भी गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी। युधिष्ठिर के इसी श्राप की वजह से स्त्रियाँ अधिक बोलती है और कभी अपने मन का भेद छुपाकर नहीं रख पाती है
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