मध्य प्रदेश के मंडला शहर में स्थित खंडहर हो चुके इस ऐतिहासिक किले को मंडला का किला कहा जाता है इसे गोंड राजा नरेंद्र शाह ने 1691 से लेकर 1731 के बीच में बनवाया था। यह काफी बड़े क्षेत्र में फैला है लेकिन आजकल इसका महत्व खत्म सा होता जा रहा है इस किले की जंगह पर अतिक्रमण करके स्थानीय लोगों के द्वारा घर बना लिए गए है जहां पर नर्मदा नदी और बंजर नदी मिलती है उसी के पास बना है यह किला। सुरक्षा के मामले में इस किले की तीन दिशाओं में नर्मदा नदी बहती थी और चौथी दिशा में एक गहरी खायी खुदवायी गई थी जिसके दोनों छोर नर्मदा नदी में मिलते थे खाई में हमेशा नर्मदा नदी का जल बहता था माना जाता है की इस खाई में खतरनाक जहरीले सांपों और मगरमछों को रखा जाता था ताकि दुश्मनों से किले की रक्षा की जा सके। लेकिन समय रहते इस किले की देख रेख नहीं की जा सकी जिसके चलते खायी भी अब एक नाले में परिवर्तित हो चुकी है किले के अधिकांश हिस्से पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है जिसकी वजह से अब यहाँ बस खंडहर ही देखने को मिलते है। किले में छोटे बड़े कुल 11 बुर्ज थे जिनमे से अधिकतर बुर्ज तो नष्ट हो गए और कुछ की बाद में पुरातत्व विभाग के द्वारा मरम्मत करवायी गई।
मंडला का किला बनने से पहले गोंड राजाओ की राजधानी
रामनगर था। रामनगर के महल शत्रुओं के हमलों से बचने के लिए सुरक्षित नहीं थे इसी
वजह से राजा नरेंद्र शाह ने नर्मदा नदी और बंजर नदी के पास मंडला के किले का
निर्माण करवाया। यह किला दोनों नदियों के संगम के पास बना है।
कुछ
इतिहासकारों के अनुसार किले का निर्माण 1698 के आस-पास पूर्ण हो गया था | किले के अन्दर कई बुर्ज , महल और मंदिरों का निर्माण करवाया गया
था परन्तु इनमें से अधिकांश हिस्से
पर लोगों द्वारा अतिक्रमण के कारण नष्ट हो गए हैं |राजा नरेन्द्र शाह के पश्चात उनके कुछ
वंशजों ने कई वर्षों तक इस किले पर शासन किया |
ईसवी
1781 में यह किला सागर के होल्कर शासकों
(मराठों ) के अधीन आ गया था तत्पश्चात 1818 से 15 अगस्त 1947 तक यह
अंग्रेजों के अधीन रहा |
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किले की रक्षा के लिए और दूर से ही शत्रुओं पर
निगाह रखने के लिये मंडला किले के निर्माण
के समय 11 बुर्ज ( Watch Tower )बनवाये
गए थे।
किले का मुख्य बुर्ज नर्मदा नदी के तट पर बनाया गया है , जो कि
काफी ऊंचा बना हैबुर्ज
पर चढ़ने के लिये सीढियांबनायी गई है और बुर्ज के अन्दर कई स्थानों पर मोर्चे भीबनाये
गए है जिनसे शत्रुओं पर दूर से ही आक्रमण किया जा सकता था। बुर्ज के पास ही एक
विशाल दरवाजा बना है। जिसे सुरक्षा के लिए बनवाया गया था ताकि
मुसीबत के समय इस
दरवाजे से किले के बाहर नर्मदा तक पहुंचा जा सके। आजकल इस स्थान से मंडला से
महाराजपुर और पुरवा तक जाने के लिये नाव चलतीं हैं।
गोंड
राजा निजाम शाह ने 1749 से 1779 के बीच मंडला के किले में अपनी कुलदेवी माता
राज-राजेश्वरी का मंदिर बनवाया था। कहा जाता है कि गोंड राजा निजाम शाह ने बिलासपुर के निकट रंगधर की पहाड़ियों से अपनी कुलदेवी को लाकर इस मंदिर में
स्थापित किया था। 1832 में मंदिर का जीर्णोधार किया गया था। जब भी राजा युद्ध में जाते
थे तब माता राज-राजेश्वरी का आशीर्वाद लेकर
ही जाते थे। मंदिर के अन्दर तीन छोटी-छोटी मढिया हैं। मंदिर के गर्भ गृह में 18 भुजाओं
वाली माता राज-राजेश्वरी बिराजमान हैं | गर्भ गृह के बाहर परिकृमा पथ बना है | गर्भ गृह की बाहरी दीवारों से लगी
प्राचीन प्रतिमायें बिराजमान हैं इनमें माँ नर्मदा , शहस्त्र बहु , शिव दरवार, गणेश जी , राम दरवार, सूर्य देव , दुर्गा माता ,हनुमान जी और विष्णु जी की प्रतिमाएं
स्थापित हैं। मंदिर का शिखर गुम्बदाकार बना है।
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