चुण्डावत और शक्तावत (दो शूरवीरों की एक सच्ची कहानी)

नमस्कार मै सुधीर आज आपको अवगत कराऊँगा भारतीय इतिहास के दो एसे शूरवीरों से जिनका नाम और पद भले ही छोटा था परंतु उनकी वीरता और बलिदान महान शूरवीरों की तरह ही सराहनीय था भारतीय इतिहास की अगर बात की जाए तो हर कोई इसकी शुरुआत राजस्थान की धरोतल से करना चाहेगा। भारत मे अनेकों वीर योद्धाओं और शूरवीरों ने जन्म लिया जिनके त्याग बलिदान और वीरता के किस्से सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते है। इतिहास की पुस्तकों के पन्नों मे से एक पन्ना एसे ही दो वीरों का भी है जिनका जिक्र पुस्तकों के अलावा शायद ही कहीं किया जाता हो। क्या इन दो वीरों की कहानी लिखी जाने वाली स्याही इतनी फीकी है की जब भारतीय इतिहास के शूरवीरों के किस्से इतिहास के पन्नों से निकालकर लोगों के दिलों तक पँहुचाने की बारी आती है तो हम उन्हे अनदेखा कर देते है इस बारे मे आपकी क्या राय है हमे कमेन्ट बॉक्स मे लिखकर जरूर बताएं।


बात उस समय की है जब मेवाड के शिशोदिया राजवंश के शासक महाराणा अमर सिंह गद्दी पर विराजमान थे वे महाराणा प्रताप के पुत्र एवं महाराणा उदयसिंह के पौत्र थे। महाराणा अमर सिंह भी महाराणा प्रताप जैसे ही वीर थे।

उन्होंने मुगलों से 18 बार युद्ध किया था महाराणा अमरसिंह की सेना मे दो राजपूत रेजिमेंट थी चुण्डावत और शक्तावतविशेष पराक्रमी होने के कारण चुण्डावत खाप के वीरों को ही "हरावल" यानी के युद्ध भूमि में सबसे आगे रहने का गौरव प्राप्त था अतः वे उसे अपना हक समझते थे ! परंतु "शक्तावत" खाप के वीर राजपूत भी कम पराक्रमी नहीं थे! उनकी भी इच्छा थी की युद्ध क्षेत्र में सेना में आगे रहकर मृत्यु से पहला मुकाबला उनका हो अतः उन्होंने राजा के समक्ष अपनी याचिका रखते हुए कहा की हम चुंडावतों से त्याग, बलिदान एवं शौर्य के मामले में किसी भी प्रकार कम नहीं है. युद्ध भूमि में आगे रहने का हक हमें भी मिलना चाहिए। महाराणा जानते थे कि युद्ध भूमि में सबसे आगे रहना यानी मौत को सबसे पहले दावत देना। अपने सैनिकों की इस त्याग और बलिदान की भावना को जानकर महाराणा धर्म-संकट में पड़ गए कि किस पक्ष को अधिक पराक्रमी मानकर युद्ध भूमि में आगे रहने का हक दिया जाए? इस पर उन्होंने एक प्रतियोगिता आयोजित करवायी और प्रतियोगिता के अनुसार यह तय किया गया कि दोनों पक्ष उन्टाला किले पर अलग-अलग दिशा से एक साथ आक्रमण करेंगे अतः जिस पक्ष का कोई भी एक व्यक्ति पहले किले में प्रवेश करेगा उसी पक्ष को ही युद्ध भूमि में आगे रहने का हक दिया जाएगा! इस पर दोनों पक्ष सहमत हो गए। बल्लू शक्तावत, शक्तावत पक्ष का नेत्रतव कर रहे थे और जैत सिंह चुण्डावत, चुण्डावत पक्ष का। दोनों पक्षों ने एक साथ प्रतियोगिता को आरंभ किया। प्रतियोगिता के शुरुआत मे लग रहा था की जैत सिंह चुण्डावत ही जीतेंगे परंतु अंतिम क्षणों मे बल्लू शक्तावत पक्ष किले के दरवाजे के निकट पहुँच गया और दरवाजे पर कब्जा जमा लिया परंतु प्रतियोगिता तो किले के अंदर पहले जाने की थी तो बल्लू शक्तावत ने अपने साथियों को किले का दरवाजा तोड़ने का हुक्म दिया वहीं दूसरी और जैत सिंह चुण्डावत पक्ष किले की दीवारों पर रसियाँ डालकर किले के अंदर दाखिल होने की कोशिश करने लगे उधर बल्लू शक्तावत ने देखा की जब हाथी किले का दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रहे है तो उनको दरवाजों में लगी हुई लोहे के नुकीली शूल चुभ रही है जिस से सहम कर हाथी पीछे हट रहे है तब बल्लू शक्तावत ने कुछ एसा किया जिसे देखकर जैत सिंह चुण्डावत भी हैरान रह गए।

बल्लू शक्तावत किले के दरवाजों की नुकीली शूलों से सटकर खड़े हो गए और महावत को हुक्म दिया की हाथी से उनके शरीर पे टक्कर लगवाए ताकि हाथी को दरवाजे की शूल न चुभे और वह पीछे न हटे इस पर पहले तो महावत ने उन्हे साफ इनकार कर दिया परंतु बाद मे जब उसने बल्लू शक्तावत को क्रोध मे आते देखा तो उसे उनका हुक्म मानना पड़ा और जैसे ही महावत ने हाथी से टक्कर लगवायी तो किले का दरवाजा तो टूट गया परंतु हाथी की जोरदार टक्कर और दरवाजे की शूल बुरी तरह बल्लू शक्तावत के शरीर मे चुभने से उनकी मृत्यु हो गई। उधर जब जैत सिंह चुण्डावत ने यह देखा तो उन्होंने बल्लू शक्तावत की इस वीरता और बलिदान को बड़ा सराहा और अपने एक साथी को कहा की तुम मेरी गर्दन काट कर किले के अंदर फेक दो और महाराणा को बता देना की उन्होंने प्रतियोगिता जीतने के लिए स्वयं एसा करने को कहा था। परंतु जब उनके साथी ने एसा करने से मना कर दिया तब जैत सिंह चुण्डावत ने स्वयं अपनी गर्दन काट दी और अपने साथी को कह दिया था की वह उनकी गर्दन किले के अंदर फेक दे। उनके साथियों ने वैसे ही किया। दूसरी तरफ जब शक्तावत पक्ष किले के अंदर घुसा तो उन्होंने देखा की जैत सिंह चुण्डावत की गर्दन पहले से ही किले के अंदर मौजूद है तो वह भी हैरान रह गए। दोनों पक्षों की तरफ से एसे सराहनीय बलिदान देखकर महाराणा अमर सिंह भी आश्चर्य चकित रह गए और उन्होंने आदेश दिया की दोनों पक्षों की तरफ से बराबर मात्रा मे योद्धा आगे रहकर सेना का नेत्रत्व करेंगे।
इतिहास इस बात का साक्षी है की वीरों की ख्याति उन्ही को प्राप्त हुई है जिन्होंने लड़ते लड़ते अपने प्राण त्याग दिए परंतु अपनी आन बान और शान पे कभी आंच नहीं आने दी। क्या आपको नहीं लगता की बल्लू शक्तावत और जैत सिंह चुण्डावत ने भी भारत भूमि पर जन्मे और शूरवीरों की तरह अपनी आन बान और शान के लिए ही अपने प्राणों की आहुति दी थी अपनी राय हमे कमेन्ट मे लिखकर जरूर बताए।

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