“गढ़ आला पण सिंह गेला” अर्थात गढ़ तो मिल गया पर सिंह चला गया यह शब्द वीर छत्रपति शिवाजी महाराज ने तब बोले थे जब उनके घनिष्ठ मित्र वीर तानाजी राव मालूसरे वीरगति को प्राप्त हो गए थे
नमस्कार मै सुधीर आज आपको अवगत कराऊँगा एक एसे महान
योद्धा से जिनके शिवाजी महाराज के साथ
वीरता के किस्से वैसे तो बहुत है परंतु वह आखिरी किस्सा आज भी याद किया
जाता है जिसमे वह वीरगति को प्राप्त हुए थे
बात उस समय की है जब मुगल साम्राज्य के सेनापति
राजपूत शासक जय सिंह प्रथम द्वारा पुरंदर किले की घेरा बंदी करने के बाद छत्रपति
शिवाजी महाराज को मुगलों के साथ मजबूरन संधि करनी पड़ी थी मुगलों ने पुरंदर किले को
चारों तरफ से घेर लिया था
अतः उनके सैनिकों की संख्या भी बहुत अधिक थी शिवाजी
महाराज ने सोचा की अगर युद्ध होगा तो उनके साम्राज्य और उनकी जनता को बहुत भारी
नुकसान होगा तब उन्होंने मुगलों के अधीन अपनी जनता को छोड़ने की बजाय एक संधि करने
का फैसला किया जिसे पुरंदर की संधि के नाम से जाना जाता है जो की 11 जून 1665 मे
हुई थी संधि के अनुसार शिवाजी महाराज को अपना
बहुत सा राज्य, बहुत से किले और काफी अधिक धन संपत्ति मुगलों के हवाले करनी
पड़ी थी वक्त और हालात को देखते हुए मजबूरन यह संधि तो हो गई थी परंतु खुद शिवाजी
महाराज और उनकी माता जीजाबाई को मुगल बहुत खटकते थे
संधि होने का जितना दुख माता जीजाबाई को हुआ था उतना
शायद ही किसी को हुआ था एक बार जब वह प्रताप गढ़ किले से नगर को देख रही थी तब
उन्हे कुछ दूरी पर सिंहगढ़ का कोंन्डाणा किला नजर आ गया जो की मुगलों के आधिपत्य मे
था अचानक वह बहुत क्रोधित हो गई और उन्होंने शिवाजी महाराज को बुलाकर उनके सामने
यह प्रतिज्ञा ली की जब तक कोंडाणा किले से मुगलों का हरा झण्डा हटाकर भगवा ध्वज
नहीं लहराया जाता तब तक वह अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी।
शिवाजी महाराज अपनी माता जीजाबाई से बेहद प्रेम करते
थे अतः वह उनके प्रति बहुत चिंतित हो गए और उन्होंने आकस्मिक एक राज्यसभा आयोजित
करवायी। शिवाजी महाराज के बचपन से ही तीन घनिष्ठ मित्र थे येसाजी
कंक, बाजी पासलकर और तानाजी मालूसरे सबको राजसभा का संदेश भेजा गया, बताया जाता है
की जब तानाजी को संदेश मिला तब वह अपने पुत्र के विवाह मे व्यस्त थे जिसका न्योता
देने वह शिवाजी महाराज के पास जाने ही वाले थे किन्तु संदेश मिलते ही वह तुरंत महल
की और निकल गए
जब राजसभा मे सभी उपस्थित हुए और छत्रपति शिवाजी राव
ने माता जीजाबाई की प्रतिज्ञा के विषय मे सबको बताया तो सभी बड़े उत्तेजित हुए और
सबने मिलकर यह निर्णय लिया की सिर्फ सिंहगढ़ ही नहीं बल्कि मुगलों को दिए हुए सभी
राज्य उनसे वापिस लिए जाएंगे और युद्ध की योजना बनायी जाने लगी तब पूरी राजसभा इस
बात पर चिंतित थी की पहले सिंहगढ़ के कोंडाणा किले पर आक्रमण कैसे और कौन करेगा क्योंकी
सिंह गढ़ का सरदार उदय भान जो की राजा जय सिंह द्वारा नियुक्त गया था
बहुत ही शूरवीर एवं बलशाली था अतः वह मुगलों के
प्रति बड़ा ही निष्ठावान था जिस वजह से उसे सरलता से अपनी तरफ करना बड़ा कठिन था
इतना ही नहीं बल्कि उसके जीतने भी सैनिक थे वे सब चुनिंदा राजपूत थे शिवाजी महाराज
इस विषय पर सोच विचार कर ही रह थे की तभी तानाजी मालूसरे शिवाजी महाराज के समक्ष
आकर खड़े हो गए और कहा की मै सिंहगढ़ को जीत सकता हूँ परंतु मुझे 1000 मावले सैनिक
जिनका चयन मै खुद करूंगा और अपना छोटा भाई
सूर्यजी साथ मे चाहिए। शिवाजी महाराज तानाजी को सिंह कहा करते थे कुछ देर सोचकर
उन्होंने कहा की सिंह मुझे तुम्हारी वीरता और युद्धनीति पर पूरा विश्वास है युद्ध
की तैयारी शुरू कीजिए। तानाजी ने युधनीति बनाते हुए भाई सूर्य जी और 1000 सैनिकों को कोंडाणा किले के विषय मे पूरी जानकारी दी और बताया की वह एक अभेद किला है उसमे प्रवेश सिर्फ दरवाजे से किया जा सकता है जो की किले के सुरक्षा कर्मी राजपूत सैनिकों के होते हुए असंभव है परंतु मैंने किले मे प्रवेश करने का उपाय सोच लिया है यह कहकर वह सेना के साथ रात मे ही युद्ध के लिए निकल गए। उनकी सेना नीरा नदी होते हुए और फिर अलग अलग रास्तों से जाकर किले से कुछ दूरी पर एक टीले पर एकत्रित हुए जहां उन्होंने योजना बनायी की आधी सेना तानाजी के साथ किले की 40 फुट ऊंची दीवार से चुपचाप अंदर जाएगी और किले का दरवाजा खोल देंगे और आधी सेना सूर्य जी के साथ घात लगाकर बाहर इंतज़ार करेंगे और जैसे ही दरवाजा खुले शत्रु पर अचानक प्रतिघात करेंगे। उसके बाद तानाजी ने एक सैनिक को घोरपड़ जिसे गोह भी कहा जाता है