वास्तुशास्त्र क्या है शिव, वास्तु और अंधकासुर

शास्त्रों के अनुसार, शास्त्रों मे लिखा है, शास्त्रों मे कहा गया है या शास्त्र यह कहते है ये वाक्य हम अक्षर सुनते या पढ़ते है दरअसल शास्त्र शब्द 'शासु अनुशिष्टौ' से निष्पन्न है जिसका मतलब होता है 'अनुशासन या उपदेश देना’’। किसी विषय, वस्तु, कला अथवा विद्या का समस्त ज्ञान किसी भी लिपि मे लिखा या सूचीबद्ध किया जाता है तो उसे शास्त्र कहते है इसी प्रकार हिन्दू धर्म मे ऋषि मुनियों द्वारा लिखे गए ग्रंथ शास्त्र कहे जाते है जैसे: शिक्षा शास्त्र, अर्थशास्त्र, खगोल शास्त्र, धर्मशास्त्र, दर्शन शास्त्र, नीतिशास्त्र, कला शास्त्र आदि,
एसे ही बहुत से शास्त्र है जिनमें से एक है वास्तु शास्त्र। आज मै आपको अवगत कराऊँगा वास्तुशास्त्र से इसकी उत्पत्ति क्यूँ कैसे कब और कहाँ हुई? चलिए जानते है। वास्तुशास्त्र, इसका प्रभाव प्रत्येक मनुष्य पर होता ही है चाहे वह उसके बारे मे जानता हो या नहीं जानता हो। जब भूमि के किसी भी टुकड़े पर चारों दिशाओं से दीवार बनाकर उस पर छत बनायी जाती है तो उसे मकान कहा जाता है और जब उस मकान मे इंसान अपने परिवार के साथ अपना जीवन व्यापन करने लगता है तो उसे घर कहा जाता है और माना जाता है कि जब चार दीवारी करके उस पर छत और दरवाजा लगाया जाता है तो उसमे वास्तु का प्रवेश खुद ब खुद हो जाता है मान्यता है कि घर की बनावट और साज सज्जा अगर वास्तु के हिसाब से की जाती है तो वहाँ सदैव positive energy रहती है और यदि उसके विरुद्ध होता है तो negative energy रहती है जिसको शुभ और अशुभ भी माना जाता है परंतु आखिर क्या है ये “वास्तु” और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? इस विषय पर बहुत सी कथाएं प्रचलित है इन कथाओं के सार भले ही अलग अलग है लेकिन उनकी कड़ी एक ही शक्ति से जुड़ती है जिसे वास्तु पुरुष के नाम से जाना जाता है एक अत्यधिक प्रचलित कथा के
अनुसार एक बार भगवान शिव पूर्व दिशा की ओर मुख करके विराजमान थे कि अचानक माता पार्वती ने पीछे से उनकी आंखे बंद कर ली जिस कारण पूरे संसार मे अंधकार छा गया और भगवान शिव को अपनी तीसरी आँख खोलनी पड़ी जिस से संसार मे रोशनी तो हो गई परंतु शिव के तीसरे नेत्र के तेज और गर्मी से माता पार्वती को पसीना आ गया और उनके पसीने की बूंदों से एक बालक ने जन्म लिया जिसका मुख बड़ा ही भयानक था और अंधकार के कारण जन्म होने की वजह से भगवान शिव ने उसको अंधक नाम दिया उसी दौरान दैत्य हिरण्याक्ष पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या कर रहा था जिस से प्रसन्न होकर शिव ने अंधक को ही दैत्य हिरण्याक्ष को वरदान स्वरूप पुत्र रूप मे दे दिया चुकि अंधक का पालन पोषण असुरों के बीच हुआ तो उसे अंधकासुर के नाम से जाना जाने लगा परंतु लिंग पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष ने काल अग्नि रुद्र के रूप मे भगवान शिव की घोर तपस्या करके भगवान शिव जैसे ही एक पुत्र का वरदान मांगा तब भगवान शिव ने हिरण्याक्ष के घर वरदान स्वरूप अंधकासुर के रूप मे जन्म लिया। चुकि अंधकासुर भगवान शिव का ही अंशावतार था शिवजी ने उसे वरदान दिया कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे बाद मे अंधकासुर ने ब्रह्मा देव की तपस्या कर उनसे देवताओं द्वारा न मारे जाने का वरदान भी प्राप्त किया। पद्मपुराण अनुसार राहू-केतु को छोडकर अंधकासुर एकमात्र ऐसा दैत्य था जिसने अमृतपान कर लिया था जिस से वह अमर हो गया था। जब भगवान विष्णु के  वराह अवतार द्वारा हिरण्याक्ष का वध कर दिया गया तो अंधकासुर देवताओं को अपना शत्रु समझने लगा चुकि  अमरता का वरदान और विकराल स्वरूप होने की वजह से उसे मृत्यु का भय नही था उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया और इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक अपने वश मे कर लिया जब अधकासुर ने माता पार्वती को वश मे करना चाहा तो देवताओं ने उसे बताया की वह उसकी माता है परंतु फिर भी जब अंधकासुर नहीं माना तो भगवान शिव को अपने ही अंशावतार का अंत करना पड़ा, जब भगवान शिव ने अंधकासुर का वध किया तो जहां जहां उसके रक्त की बुँदे गिरती वहाँ अनेकों अंधकासुर उत्पन्न हो जाते जिसे देख भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पसीने से एक एसे अवतार को जन्म दिया जिसने उन अनेकों अंधकासुरों को खाना शुरू कर दिया परंतु अंधकासुर का रक्त और अनेकों अंधकासुरों को खाने के बाद शिव के उस अवतार ने भी अंधकासुर जैसा ही विकराल रूप ले लिया जब उस अंधकासुर स्वरूप अवतार की भूख समाप्त नहीं हुई तो उसने भगवान शिव की तपस्या कर उनसे वरदान मांगा की वह तीनों लोकों को ग्रस कर ले भोले भण्डारी के भोले स्वभाव को तो आप जानते ही है उन्होंने उसे वह वरदान दे दिया अब अंधकासुर स्वरूप अवतार जैसे जैसे अपनी भूख समाप्त करता गया उसका शरीर एक विकराल और विशाल वस्तु का रूप लेता चला गया।
यह देख सभी देवता भयभीत होकर भगवान शिव के पास गए और उनसे इस समस्या का निवारण करने का आग्रह किया तब शिव जी के कहे अनुसार जब अंधकासुर स्वरूप अवतार ने एक विशाल वस्तु का रूप ले लिया तो वह पृथ्वी पर औंधे मुह जा गिरा जहां 45 देवताओं ने उसे वहीं दबा लिया और उस पर विराजमान हो गए। इस प्रकार वस्तु रूप विकराल शिव के अवतार को देवताओं द्वारा वास्तुपुरुष नाम दिया और द्वताओं ने उसे वरदान दिया की निर्माण से जुड़े यज्ञ मे वास्तुपुरुष ही विधमान होंगे तथा तभी से जीवन में शांति के लिए वास्तु पूजा का आरंभ हुआ। हम यह भी कह सकते है की भगवान शिव ने ही अपने अंशावतार का वध करके वास्तुपुरुष के रूप मे वास्तुशास्त्र को जन्म दिया था