इतिहास एक ऐसा विषय जिसके बारे में हम जितना विस्तार से जानने की कौशिश करते है यह उतना ही विस्तृत होता रहता है और नए नए तथ्य निकल निकल कर सामने आते रहते है इतिहास के पन्नों मे दर्ज तथ्यों मे से ऐसा ही एक नाम है धोलावीरा जिसकी खोज होने से पहले कोई कल्पना भी नहीं सकता था कि इतने साल पहले भी इतने सटीक ढंग से एक बेहतरीन शहर का निर्माण किया गया होगा गुजरात में कच्छ प्रदेश के उतरीय विभाग खडीर में धोलावीरा गांव के पास पांच हजार साल पहले विश्व का यह प्राचीन महानगर था। उस समय वहाँ करीब 50-55 हजार लोग रहा करते थे।
4000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। बाद में 1450 में वापस उस जंगह पर इंसानो ने रहना आरंभ कर दिया। पुरातत्त्व विभाग के लिए यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है जो कि 23.52 उत्तर अक्षांश और 80.13 पूर्व देशांतर पर स्थित है। यहाँ उत्तर से मनसर और दक्षिण से मनहर छोटी नदी से पानी एकत्रित होता था। हड़प्पा संस्कृति के इस नगर की जानकारी 1960 में हुई और 1990 तक इसकी खुदाई चलती रही। हड़प्पा, मोहनजोदडो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल ये छः पुराने महानगर पुरातन संस्कृति के नगरों मे आते है। जिनमें धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है। इस जगह का खनन पुरातत्त्व विभाग के डॉ॰ आर. एस. बिस्त के द्वारा किया गया था। धोलावीरा का 100 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तार था। प्रांत अधिकारियों के लिये तथा सामान्य जन के लिये अलग-अलग विभाग निर्धारित किये गए थे, जिसमें प्रांत अधिकारियों का विभाग मजबूत पत्थर की सुरक्षित दीवार से बनाया गया था, जो आज भी दिखाई देता है। अन्य नगरों का निर्माण कच्ची पक्की ईंटों से किया गया था। धोलावीरा का निर्माण चौकोर एवं आयताकार पत्थरों से हुआ है, जो पास ही मे स्थित खदानो से मिलता था। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो धोलावीरा में अधिकतर व्यापारी ही थे और यह व्यापार का एक मुख्य केन्द्र था। यह कुबेर पतियों का महानगर था। ऐसा लगता है कि सिन्धु नदी समुद्र से यहाँ मिलती थी। अतः भूकंप के कारण पूरा area ऊँचा-नीचा हो गया। आज के आधुनिक महानगरों जैसी पक्की गटर व्यवस्था पांच हजार साल पहले धोलावीरा में भी थी। पूरे नगर में धार्मिक स्थलों के कोई अवशेष नहीं हैं। इस प्राचीन महानगर में पानी की जो व्यवस्था की गई थी वह बहुत ही अद्दभुत है। आज के समय में बारिस मुश्किल से होती है। बंजर जमीन के चारो ओर समुद्र का पानी फैला हुआ है। इस महानगर में अंतिम संस्कार की अलग-अलग व्यवस्थाएँ की गई थी।
भारत, जापान तथा विश्व के अन्य निष्णांतो के द्वारा कम्प्यूटर की मदद से नगर की कुछ तस्वीरें बनायी गई है। जिन्हे देखकर आप महानगर की भव्यता को भली भाँति समझ सकते है।
सुरक्षित किले के एक महाद्वार के ऊपर उस जमाने का साईन बोर्ड पाया गया है, जिस पर दस बड़े-बड़े अक्षरो में कुछ लिखा गया है, जो पांच हजार साल के बाद आज भी सुरक्षित है। वह महानगर का नाम है या प्रान्त अधिकारियों का, यह आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो जिसके द्वारा नगर वासियों का स्वागत किया जा रहा हों। सिन्धु घाटी की लिपि आज भी एक अनसुलझी पहेली है।
हड्डपा, मोहन जोदडो तथा धोलावीरा के लोग कौन सी भाषा बोलते थे और किस लिपि का उपयोग करते थे, यह आज तक नहीं जाना जा सका है। यहाँ विभिन्न प्रकार के लगभग 400 मूल संकेत पायें गए हैं। साधारणतया शब्दों क़ी लिखावट दायें से बायीं दिशा क़ी ओर है। इनमें से अधिकतर लिपि मुहर अथवा पत्थर पर उभरीं हुई प्रतिकृति तथा छाप अथवा मिट्टी क़ी पट्टिका पर दबाकर बनाई गई प्रतिकृति के रूप में पायी गई है। इनमें से कुछ लिपि तांबें और कांसे के प्रस्तर तथा कुछ टेराकोटा और पत्थर के रूप में पायी गई है। ऐसा लगता है कि इन मुहरों का उपयोग व्यापार और आधिकारिक प्रशासकीय कार्य के लिए किया जाता रहा होगा। इन लिपियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी सामूहिक उत्सव के पोस्टर और बैनर के रूप में प्रयुक्त किया गया हो और मानो यह किसी विशेष समूह के नामों को इंगित करता हो। धौलावीरा का यह शहर आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है जिस के रहस्यों की तस्वीर से पर्दा उठाने की कौशिश आज भी पुरातत्व विभाग के द्वारा जारी है
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