बाबा हरभजन सिंह



बाबा हरभजन सिंह
ये कहानी है एक एसे जवान की,  एक एसे विश्वाश की जो वास्तविक होकर भी अविस्वसनीय है
एक एसा जवान जो मृत्यु के बाद भी कर रहा है देश सेवा
भारतीय सेना की बहादूरी के किस्से जितने हैरतअंगेज़ और प्रेरणादायक होते हैं उतने ही दिलचस्प भी ! हमने आज तक कई शहीदों और सेना में सेवारत जवानों के किस्से सुने हैं, जिन्होंने जीते-जी अपनी मातृभूमि पर आंच तक नहीं आने दी। परंतु आज हम बात करेंगे एक एसे जवान की, जिन्होंने शहादत के बाद भी अपने देश की रक्षा का बीड़ा उठाया हुआ है
एक एसा सैनिक, जो मरने के बाद भी अपना काम पूरी जिम्मेदारी और निष्ठा से करता है जिनका नाम चीन की सेना भी बड़ी ही इज्जत से लेती है
जी हाँ ये दास्तान है बाबा हरभजन सिंह की जिनका जन्म 3 अगस्त 1941, पंजाब के कपूरथला जिले मे बरोदल नामक गाँव मे हुआ था

उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से प्राप्त की थी। मार्च, 1955 में उन्होंने 'डी.ए.वी. हाई स्कूल', पट्टी से मेट्रिक पास की।
जून, 1956 में हरभजन सिंह अमृतसर में एक सैनिक के रूप में प्रविष्ट हुए और सिग्नल कोर में शामिल हो गए। 30 जून, 1965 को उन्हें एक कमीशन प्रदान की गई और वे '14 राजपूत रेजिमेंट' में तैनात हुए। वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने अपनी यूनिट के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया था। इसके बाद उनका स्थानांतरण '18 राजपूत रेजिमेंट' के लिए हुआ।
जब वर्ष 1968 में कैप्टन हरभजन सिंह '23वीं पंजाब रेजिमेंट' के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे। तब 4 अक्टूबर, 1968 मे खच्चरों का एक काफिला लेकर, पूर्वी सिक्किम के तुकुला से डोंगचुई तक, जाते समय पाँव फिसलने के कारण नदी मे डूबकर उनकी मृत्यु हो गई थी

जब वह रेजिमेंट मे वापिस नहीं पहुंचे तो उन्हे भगोड़ा घोसीत कर दिया गया  बाबा हरभजन सिंह ने अपने साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर अपनी मृत्यु की जानकारी दी और बताया कि उनका शव कहाँ पर मिलेगा। उन्होंने प्रीतम सिंह से यह भी इच्छा जाहिर की कि उनकी समाधि भी वहीं बनवाई जाए। प्रीतम सिंह ने अपने उच्च अधिकारियों को बताया की उनका शरीर बहकर घटना स्थल से 2 कि.मी. की दूरी पर जा पहुँचा है  जब भारतीय सेना ने बाबा हरभजन सिंह की खोज-खबर लेनी शुरू की, तो तीन दिन बाद उनका पार्थिव शरीर मिला। पहले प्रीतम सिंह की बात का किसी ने विश्वास नहीं किया, लेकिन जब उनका शव उसी स्थल पर मिला, जहाँ उन्होंने बताया था तो सेना के अधिकारियों को उनकी बात पर विश्वास हुआ और उनको भगोड़ा कहने की अपनी भूल को सुधारा और 'छोक्या छो' नामक स्थान पर उनकी समाधि बनवाई।

कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह नाथुला के आस-पास चीनी सेना की गतिविधियों की जानकारी अपने मित्रों को सपनों में देते रहे, जो हमेशा सच साबित होती थीं. और इसी तथ्य के आधार पर उनको मरणोपरांत भी भारतीय सेना की सेवा में रखा गया. आज भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रही है. बाबा हरभजन सिंह को नाथूला का हीरो भी कहा जाता है.
बाबा के मंदिर में उनके जूते और बाकी सामान रखा गया है. भारतीय सेना के जवान बाबा के मंदिर की चौकीदारी करते हैं. और रोजाना उनके जूते पॉलिश करते हैं, उनकी वर्दी साफ करते हैं, और उनका बिस्तर भी लगाते हैं. वहां तैनात सिपाहियों का कहना है कि साफ किए हुए जूतों पर कीचड़ लगी होती है और उनके बिस्तर पर सिलवटें देखी जाती हैं.

लोगों में इस जगह को लेकर बहुत आस्था थी लिहाजा श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने 1982 में उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे बनवाया दिया, जिसे अब बाबा हरभजन सिंह मंदिर के नाम से जाना जाता है. हर साल हजारों लोग यहां दर्शन करने आते हैं. उनकी समाधि के बारे में मान्यता है कि यहाँ पानी की बोतल कुछ दिन रखने पर उसमें चमत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते हैं. मंदिर मे नाम लिख कर बोतले रखने की जंगह अलग से बनायी गई है कहा जाता है की चमत्कारिक पानी का सेवन करने के दौरान माँस और मदिरा से दूर रहना चाहिए|
बाबा की आत्मा से जुड़ी बातें भारत ही नहीं चीन की सेना भी बताती है. चीनी सिपाहियों ने भी, उनको घोड़े पर सवार होकर रात में गश्त लगाने की पुष्टि की है. भारत और चीन आज भी बाबा हरभजन सिंह के होने पर यकीन करते हैं. और इसीलिए दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग मे एक कुर्सी बाबा हरभजन सिंह के नाम की भी रखी जाती है.

सारे भारतीय सैनिकों की तरह बाबा हरभजन सिंह को भी हर महीने वेतन दिया जाता है. सेना के पेरोल में आज भी बाबा का नाम लिखा हुआ है. सेना के नियमों के अनुसार समय समय पर उनकी पदोन्नति भी की जाती है. हर साल उन्हें 15 सितंबर से 15 नवंबर तक दो महीने की छुट्टी दी जाती थीं और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग और सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते और साल भर का वेतन दो सैनिकों के साथ गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन लाते। वहाँ से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता! गाड़ी में उनके नाम का टिकट भी बुक किया जाता. यहाँ से सेना की गाड़ी उन्हें उनके गाँव तक छोडऩे जाती. वहाँ सब कुछ उनकी मां को सौंपा जाता फिर उसी ट्रेन से उसी आस्था और सम्मान के साथ उनके समाधि स्थल वापस लाया जाता. जिन दिनों बाबा छुट्टी पर रहते थे सीमा पर तैनात सैनिकों की संख्या बढ़ा दी जाती थी क्योंकि बाबा हरभजन सिंह उनके साथ नहीं होते थे जब बाबा को ट्रेन से लाया और ले जाया जाता था तो उनके जलूस मे बड़ी संख्या मे लोग शामिल होने लगे थे कुछ लोगों का मानना था कि यह जलूस अंधविस्वास को बढ़ावा दे रहा है तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया, चुकि सेना मे किसी भी तरह के अंधविस्वास को बढ़ावा नहीं दिया जाता है  इसलिए  तब से यह यात्रा बंद कर दी गई. अब बाबा साल के पूरे 12 महीने ड्यूटी पर तैनात रहते है

इस तरह की आस्था पर भले ही सवाल उठाए जाएं और अंधविश्वास कहा जाए लेकिन भारतीय सैनिकों का मानना है कि उन्हें बाबा हरभजन सिंह के नाम से ही शक्ति की अनुभूति होती है.

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https://youtu.be/YoRkU_admgY