नमस्कार मै सुधीर आज आपको बताऊँगा जालौन के चमत्कारी मंदिर के बारे मे
जालौन का एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर जो आखिरी हिन्दू राजा पृथविराज चौहान और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा और उद्दल के बीच हुए युद्ध का गवाह बना हुआ है यह मंदिर जालौन के बैरागढ़ गाँव मे स्थित है जो शक्ति पीठ शारदा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है
आल्हा ने इसी मंदिर में वैराग्य लिया था। जिससे इसका नाम बैरागढ़ पड़ गया। इस मंदिर में आल्हा की सांग गड़ी हुई है जो बहुत भारी भरकम है। आल्हा ने अपनी विजय के लिए आग्रह कर यहाँ देवी की स्थापना कराई थी। वैसे तो माता शारदा का स्थान त्रिकुट पर्वत पर है जो मध्य प्रदेश में स्थित है। बताते हैं कि बैरागढ़ में देवी की स्थापना कराने के बाद आल्हा यहां पूजा करते थे। यहाँ सिर्फ जालौन से ही नहीं अपितु पूरे भारत से लोग दर्शन करने आते है अतः नव रात्रि पे तो यहाँ पाँव रखने तक की जंगह नहीं होती है
शारदा माँ का यह मंदिर साधारण नक्काशी का बना हुआ है। इस मंदिर के पीछे एक कुंड बना हुआ है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से त्वचा रोग दूर हो जाते हैं। जिसके चलते बड़ी संख्या में भक्त यहां स्नान करते हैं। बड़ी दूर दूर से लोग यहां पर आते हैं। यह स्थान बहुत ही रमणीक है। नवरात्र में यहां दशमी के दिन प्रमुख मेला लगता है। बताया जाता है कि देवी शारदा की प्रतिमा दिन में कई बार रूप बदलती है। देवी भक्त जवारे लेकर देवी के चरणों में समर्पित करते हैं।
यह मंदिर जालौन जनपद के जिला मुख्याल्य उरई से लगभग 30 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है यहाँ पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा माँ के रूप मे विराजमान है माँ शारदा की अष्ट भुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है इस मंदिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडरमल द्वारा 11वीं शताब्दी मे करवायी गई थी
एट कस्बे तक यहां ट्रेन और बस से पहुंचा जा सकता है। एट से टैक्सी ही मंदिर तक जाने का एकमात्र साधन है। कस्बे से मंदिर की दूरी लगभग 7 किलोमीटर है। निजी वाहन से पहुंचने में भी आसानी रहती है। यह झांसी जाने वाले मार्ग पर स्थित है।
जालौन का एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर जो आखिरी हिन्दू राजा पृथविराज चौहान और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा और उद्दल के बीच हुए युद्ध का गवाह बना हुआ है यह मंदिर जालौन के बैरागढ़ गाँव मे स्थित है जो शक्ति पीठ शारदा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है
आल्हा ने इसी मंदिर में वैराग्य लिया था। जिससे इसका नाम बैरागढ़ पड़ गया। इस मंदिर में आल्हा की सांग गड़ी हुई है जो बहुत भारी भरकम है। आल्हा ने अपनी विजय के लिए आग्रह कर यहाँ देवी की स्थापना कराई थी। वैसे तो माता शारदा का स्थान त्रिकुट पर्वत पर है जो मध्य प्रदेश में स्थित है। बताते हैं कि बैरागढ़ में देवी की स्थापना कराने के बाद आल्हा यहां पूजा करते थे। यहाँ सिर्फ जालौन से ही नहीं अपितु पूरे भारत से लोग दर्शन करने आते है अतः नव रात्रि पे तो यहाँ पाँव रखने तक की जंगह नहीं होती है
शारदा माँ का यह मंदिर साधारण नक्काशी का बना हुआ है। इस मंदिर के पीछे एक कुंड बना हुआ है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से त्वचा रोग दूर हो जाते हैं। जिसके चलते बड़ी संख्या में भक्त यहां स्नान करते हैं। बड़ी दूर दूर से लोग यहां पर आते हैं। यह स्थान बहुत ही रमणीक है। नवरात्र में यहां दशमी के दिन प्रमुख मेला लगता है। बताया जाता है कि देवी शारदा की प्रतिमा दिन में कई बार रूप बदलती है। देवी भक्त जवारे लेकर देवी के चरणों में समर्पित करते हैं।
यह मंदिर जालौन जनपद के जिला मुख्याल्य उरई से लगभग 30 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है यहाँ पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा माँ के रूप मे विराजमान है माँ शारदा की अष्ट भुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है इस मंदिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडरमल द्वारा 11वीं शताब्दी मे करवायी गई थी
एट कस्बे तक यहां ट्रेन और बस से पहुंचा जा सकता है। एट से टैक्सी ही मंदिर तक जाने का एकमात्र साधन है। कस्बे से मंदिर की दूरी लगभग 7 किलोमीटर है। निजी वाहन से पहुंचने में भी आसानी रहती है। यह झांसी जाने वाले मार्ग पर स्थित है।