ध्रुव तारा

ब्रह्मांड का सबसे चमकीला तारा  


नमस्कार मै सुधीर आज आपको बताऊँगा ब्रह्मांड के सबसे चमकीले तारे के बारे मे
रात होते ही आसमान सितारों से जगमगा जाता है जिनमे एक सबसे ज्यादा चमकने वाला तारा हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है जो ध्रुव तारे के नाम से जाना जाता है
अंग्रेजी मे इसे पोल स्टार कहा जाता है वैज्ञानिक इसे पोल स्टार या ध्रुव तारा इसलिए कहते है क्योंकी यह एक जंगह स्थिर रहता है अतः पोल का हिन्दी अर्थ ध्रुव भी होता है खगोल शास्त्रियों के अनुसार सूर्य भी एक तारा है और ध्रुव तारे का व्यास सूर्य से भी 30 गुना अधिक है इसकी रोशनी सूर्य से 2200 गुना अधिक है और भार सूर्य से 7.5 गुना अधिक है रात्री मे पृथ्वी के rotation से आकाश के लगभग सभी तारे धीरे धीरे घूमते रहते है परंतु ध्रुव तारा उत्तर की ओर स्थिर रहता है इसलिए रेगिस्तान और समुंदर मे यात्री दिशा जानने के लिए भी ध्रुव तारे की सहायता लेते है वैज्ञानिकों के अनुसार 26000 वर्ष मे एक बार इसके स्थान मे परिवर्तन होता है पृथ्वी से इसकी दूरी 390 प्रकाश वर्ष है जबकि सूर्य से पृथ्वी की दूरी 15 करोड़ km है अतः ध्रुव तारा पृथ्वी से सूर्य से भी बहुत ज्यादा दूर है
खगोल शास्त्रियों के अनुसार इसे आकार मे बहुत बड़ा होने के कारण महादनव तारा भी कहा जाता है परंतु हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ध्रुव तारा ध्रुव नामक एक बालक है जिसकी तारा बनने की कथा कुछ इस प्रकार है शस्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की तब उन्होंने पृथ्वी पर मनु जो की सबसे पहले पुरुष थे और पृथ्वी के साथ ही उसकी रचना हुई थी तो उसे स्वयंभू नाम दिया। सबसे पहले जिस स्त्री की रचना की उसे शतरुपा नाम दिया बाद मे उन दोनों के दो पुत्र प्रियवत और उत्तानपाद तथा 3 पुत्रियाँ आकूति, देवहूति और प्रसूति हुए। उत्तानपाद की दो पत्नियां थी सुनीति और सुरुचि।
जिनसे दो पुत्र हुए सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम। जब ध्रुव 5 वर्ष के थे तब एक दिन वह अपने पिता उत्तानपाद की गोद मे बैठे थे सुरुचि को यह देख ध्रुव के प्रति ईर्ष्या पैदा हुई और उसने ध्रुव को उत्तानपाद की गोद से उतारकर अपने पुत्र उत्तम को बैठा दिया जिस से ध्रुव नाराज होकर अपनी माता सुनीति के पास गए माता सुनीति ने ध्रुव को आश्वासन दिया और कहा की वह भगवान का स्मरण करें और उनके सम्मुख अपनी याचिका रखे तब बालक ध्रुव को अपनी माता से भगवान का ज्ञान हुआ और वह बगैर किसी को कुछ बताए भगवान की भक्ति करने के लिए घर से जंगल की तरफ निकल गए जहां रास्ते मे उन्हे नारद मुनि मिले। नारद जी ने बालक ध्रुव को बहुत समझाया परंतु वह नहीं माने तब नारद जी ने बालक ध्रुव को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मंत्र की दीक्षा दी।
उसके बाद नारद जी ध्रुव के पिता उत्तानपाद के पास गए और उन्हे पूरी घटना बतायी और साथ ही यह आश्वासन भी दिया की बालक ध्रुव की रक्षा स्वयं भगवान विष्णु करेंगे तब उत्तानपाद का पुत्र के प्रति विचलित मन थोड़ा शांत हुआ। उधर ध्रुव ने भगवान विष्णु की तपस्या आरंभ कर दी और बहुत सी कठिनाइयों के बाद भी अपनी तपस्या पे अटल रहे 6 माह की कठोर तपस्या अतः उनका द्रढ़ संकल्प देखकर भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर ध्रुव को वरदान दिया की आपकी हर इच्छा पूर्ण होगी और मृत्यु के बाद भी आप संसार मे चमकते रहेंगे अतः पूरे ब्रह्मांड को दिशा प्रदर्शित करेंगे।
आप इस जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाएंगे और संसार के सर्वोत्तम एशवर्य को भोग कर मृत्युप्रान्त ब्रह्मलोक मे ध्रुव तारा बनकर सदैव चमकते रहेंगे।

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