वभ्रुवाहन और अर्जुन (एक पुत्र ने लिए अपने पिता के प्राण)

देवताओं द्वारा दिए गए श्राप की वजह से एक पुत्र अपने पिता की मृत्यु का कारण बनता है 



महाभारत, महाभारत एक ऐसा महाकाव्य और ग्रंथ है जिसमे धर्म हो या अधर्म, वचन हो या प्रतिज्ञा, श्राप और आशीर्वाद, शास्त्र हो या शस्त्र, नियति और कूटनीति, यहाँ तक की देवताओं द्वारा दिया गया हर एक वरदान रहस्य है महाभारत से जुड़ा हर एक पात्र और उनका जन्म एक रहस्य है इस  महाकाव्य के हर पन्ने के एक एक शब्द मे रहस्य है नमस्कार मै सुधीर आज आपको अवगत कराऊँगा महाभारत के एक ऐसे रहस्य से जिसमे देवताओं द्वारा दिए गए श्राप की वजह से एक पुत्र अपने पिता की मृत्यु का कारण बनता है


अर्जुन महाभारत का एक ऐसा योद्धा था जिस पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण के चक्र की छत्र छायीं हमेशा बनी रहती थी वह कभी किसी योद्धा से नहीं हारा था परंतु अपने ही पुत्र के हाथों मारा जाता है द्रोपती के अतिरिक्त अर्जुन के तीन विवाह और भी हुए थे, श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा से जिससे अभिमन्यु ने जन्म लिया था, ऐरावत वंश की नाग कन्या उलूपि से जिससे इरावन नामक एक पुत्र ने जन्म लिया था तथा मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से जिससे वभ्रुवाहन नामक एक पुत्र ने जन्म लिया था चित्रांगदा मणिपुर के नरेश चित्रवाहन की एक लौती पुत्री थी अर्जुन को जब 12 वर्ष का वनवास अकेले भोगना पड़ा था तब एक बार वह मणिपुर से होकर गुजर रहे थे जहां उनका मिलाप चित्रांगदा से हुआ।
अर्जुन ने राजा चित्रवाहन के समक्ष चित्रांगदा से विवाह का प्रस्ताव रखा अतः उनको यह भी बताया की वह कुंती पुत्र अर्जुन है यह जानकर राजा चित्रवाहन बहुत प्रसन्न हुए परंतु उन्होंने अर्जुन को बताया की हमारे पूर्वजों मे प्रभंजन नामक राजा हुए थे जिन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी भगवान शिव ने प्रसन्न होकर यह वरदान दिया था की तुम्हें पुत्र की प्राप्ति तो होगी परंतु तुम्हारी हर पीढ़ी मे एक ही संतान होगी और मेरी एक लौती संतान मेरी पुत्री चित्रांगदा है यदि मै अपनी पुत्री का विवाह आपसे करता हूँ तो मेरे बाद इस राज्य का भार कौन संभालेगा। यदि आप मुझे यह वचन दे की विवाह के पश्चात चित्रांगदा और आपकी जो भी संतान होगी उसे आप इस राज्य का उतराधिकारी बनाकर हमे सौंप देंगे तो मै राजकुमारी चित्रांगदा का विवाह आपसे कर सकता हूँ।
अतः अर्जुन उनसे सहमत हो गए और विवाह के पश्चात उन्हे एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई जिसका नाम वभ्रुवाहन रखा गया अतः वनवास की अवधि समाप्त होने पर वभ्रुवाहन के पालन पोषण का भार चित्रांगदा पर छोड़कर अर्जुन इंद्रप्रस्थ वापस लौट गए। परंतु कालांतर मे महाभारत के युद्ध के पश्चात महर्षि वेदव्यास और श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया जिसमे घोड़े के साथ अर्जुन को भेजा गया अनेक राजाओं ने पांडवों की अधीनता स्वीकार कर ली कुछ ने मैत्रीपूर्ण संबंधों के आधार पर तो कुछ ने युद्ध करके हारने के बाद। घूमते घूमते वह घोडा मणिपुर भी पहुंचा जहां के राजा अर्जुन पुत्र वभ्रुवाहन थे
जब वभ्रुवाहन ने यह सुना की उनके पिता मणिपुर मे आए है तो वह बहुत प्रसन्न होकर बड़े उत्साह से अपने पिता के स्वागत के लिए पहुँच गए परंतु जब वभ्रुवाहन अर्जुन के समक्ष आए तो अर्जुन ने उसे बताया की वह यहाँ उसके पिता के नाते नहीं आए है बल्कि एक क्षत्रिय अश्वमेघ का घोडा लेकर आया है और यहाँ के राजा और एक क्षत्रिय होने के नाते तुम्हें मुझसे युद्ध करना चाहिए उसी समय नाग कन्या उलूपि भी वहाँ आ पहुँचती है और वह भी वभ्रुवाहन को युद्ध के लिए बहुत उकसाती है परंतु वभ्रुवाहन जब किसी भी तरह युद्ध के लिए तैयार नहीं होता है तो अर्जुन क्रोधित होकर वभ्रुवाहन को कहते है की एक पिता होने के नाते मै तुम्हें आज्ञा देता हूँ की तुम कुंती पुत्र अर्जुन से युद्ध करो अतः पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वभ्रुवाहन युद्ध के लिए तैयार हो गया।
पिता और पुत्र के बीच घमासान युद्ध हुआ दोनों तरफ से अस्त्र शस्त्र प्रयोग किए गए अंत मे एक अस्त्र अर्जुन ने तथा एक अस्त्र वभ्रुवाहन ने एक दूसरे पर एक साथ छोड़ा जिसके प्रहार से वभ्रु वाहन तो मूर्छित हो गए परंतु अर्जुन वीरगति को प्राप्त हो गए अतः उनके प्राण निकल गए उसी समय चित्रांगदा भी वहाँ आ पहुंची और वभ्रुवाहन को मूर्छा अवस्था से होश मे लाकर उलूपि से पूछती है की यह अनर्थ कैसे हो गया एक पुत्र अपने पिता के प्राण कैसे ले सकता है कुंती पुत्र इतने महान योद्धा होकर भी अपने पुत्र से कैसे हार सकते है यह अवस्य ही कोई रहस्य है कृप्या बताइए अन्यथा मै समझूँगी की यह आपकी ही कोई माया है तब उलूपि अपनी संजीवनी मणि का प्रयोग कर अर्जुन को पुनर्जीवित करती है और बताती है कि वह एक बार गंगा तट पर गयी थी।
वहां वसु नामक देवता गणों का गंगा से वार्तालाप हुआ था और उन्होंने यह शाप दिया था कि गंगापुत्र भीष्म को शिखंडी की आड़ से मारने के कारण अर्जुन अपने पुत्र के हाथों भूमिसात होंगे, तभी पापमुक्त हो पायेंगे। इसी कारण मैंने भी वभ्रुवाहन को युद्ध के लिए प्रेरित किया था।  उलूपि वभ्रुवाहन को समझाती है की  उसने अपने पिता के प्राण नहीं लिए थे अतः यह तो देवताओं द्वारा रची गई एक नियति थी जिससे की अर्जुन पाप मुक्त हो सके।

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