जापान के हिरोशिमा में क्या है इस परछायी का रहस्य


आखिर किसकी है ये परछायी, क्या रहस्य है इस परछायी के पीछे, कहाँ से आई और खुद ब खुद कैसे बन गई 
6 अगस्त सन 1945 एक ऐतिहासिक दिन जब दुनिया में पहली बार परमाणु बम किसी शहर पर गिराया गया। और उसी के साथ जुड़ा है एक ऐसा रहस्य जिसे सन 1945 से लेकर आज तक कोई नहीं सुलझा सका, आखिर किसकी है ये रहस्यमयी परछाई


जापान के एक शहर हिरोशिमा मे एक जगह पर बनी हुई इंसान जैसी दिखने वाली ये परछाई एक ऐसी गुत्थी बनी हुई है जिसे आज तक कोई भी नहीं सुलझा पाया।
इस परछाई को 'द हिरोशिमा स्टेप्स शैडो' या 'शैडोज ऑफ हिरोशिमा' के नाम से जाना जाता है। दरअसल, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब हिरोशिमा पर परमाणु हमला हुआ था, तो लाखों लोग एक झटके में मौत के मुंह में समा गए थे। परछाई वाली ये तस्वीर भी धमाके वाली जगह से 850 फीट की दूरी पर खींची गई थी, जहां कोई व्यक्ति बैठा हुआ था।
 
हिरोशिमा एक ऐसा शहर जिसने परमाणु जैसे खतरनाक बम का भयंकर आतंक सबसे पहले झेला। 6 अगस्त 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान पर यह बम अमेरिका ने गिराया था।
हिरोशिमा पर परमाणु बम के विस्फोट से लगभग एक लाख 40 हजार लोगों की मौत हुई थी। जब विस्फोट हुआ था तो उसमें से भयंकर ऊर्जा निकली थी जिसकी गर्मी की वजह से ही करीब 65 हजार से 80 हजार लोग मारे गए थे, जबकि बाद में परमाणु विकिरण संबंधी बीमारियों के चलते भी हजारों लोगों की मौत हुई थी।  
 
हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम का नाम 'लिटल ब्वॉय' था, जिसका वजन करीब 4400 किलोग्राम था। इस बम के फटने से जमीनी स्तर पर लगभग 4,000 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी पैदा हुई थी। जरा सोचिए कि एक आम इंसान 50-55 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी ही नहीं झेल पाता,  तो जाहिर है कि 4,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी किसी भी इंसान को पलभर में जलाकर राख बनाने के लिए तो बहुत ज्यादा थी।

कहते हैं कि परमाणु बम की अथाह ताकत ने उस व्यक्ति को तो पूरी तरह से मिटा दिया, लेकिन उसकी परछाई को वो नहीं मिटा सका। इस छाया की वास्तविकता की कभी पहचान नहीं की जा सकी कि वो व्यक्ति कौन था, जो वहां पर बैठा हुआ था। यह रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया है।

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