भारतीय रुपये की शुरुआत कब हुई और कैसे बनाया जाता है?

मुद्रा यानी कि धन या रुपया-पैसा पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था को सुचारु ढंग से चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है परंतु क्या आप ये जानते है कि ये currency या रुपया कैसे तैयार किया जाता है और इसका चलन या शुरुआत कब से हुई।  तो चलिए जानते है
भारत विश्व कि उन प्रथम सभ्यताओं में से एक है जहाँ सिक्कों का प्रचलन लगभग छठी शताब्दी में शुरू हुआ था। 18वीं शताब्दी के पहले मुद्रा के तौर पर सोने व चांदी के सिक्कों का प्रचलन था। मौर्य साम्राज्य में चंद्रगुप्त मौर्य ने चांदी, सोने, तांबे और सीसे के सिक्के चलवाए थे। छठी शताब्दी में सिक्कों को पुराण, कर्शपना या पना कहा जाता था। चांदी के सिक्के को रुप्यारुपा,  सोने के सिक्के को स्वर्णरुपा,  तांबे के सिक्के को ताम्ररुपा और सीसे के सिक्के को सीसारुपा कहा जाता था। उस दौर में सिक्कों का आकार अलग-अलग होता था जिन पर अलग-अलग चिह्न बने होते थे।
रुपया शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द रूपा या रुप्याह् में निहित है, जिसका अर्थ होता है चांदी अतः संस्कृत में रूप्यकम् का अर्थ चांदी का सिक्का होता है।
दरअसल सिक्के के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला भारतीय रुपया शेर शाह सूरी के द्वारा 1540-1545 मे जारी किये गए रुपये का नवीनतम रूप है,  जिसे शेरशाह सूरी के बाद मुगलों ने आगे बढ़ाया था।
पहले चांदी के सिक्के का वजन 178 ग्रेन यानी कि 11.34 ग्राम होता था.
शेर शाह सूरी द्वारा सिक्कों को जारी करने का प्रचलन अंग्रेजों के शासन तक रहा.
भारत में सिक्कों की जगह नोट ने तब लेनी शुरु की जब यूरोपीय कंपनियां व्यापार के लिए भारत में आईं तब उन्होंने अपनी सहूलियत के लिए यहां निजी बैंक की स्थापना की। और फिर क्या था समय के साथ साथ ये सिक्के इतिहास के पन्नों में कैद हो गए और उन मुद्राओं की जगह कागजी मुद्रा ने ले ली।
सबसे से पहले कागज के रुपये भारतीय निजी बैंकों द्वारा बनाये गए थे.:- बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान 1770-1832 में , जनरल बैंक ऑफ़ बंगाल एंड बिहार 1773-1775 में तथा बंगाल बैंक 1784-1791 में।  भारत की सबसे पहली कागजी मुद्रा कलकत्ता के बैंक ऑफ हिंदोस्तान ने 1770 में जारी की थी। स्वतंत्र भारत में सबसे पहले छपने वाला नोट एक रुपये का था।
आजादी के बाद पहली बार एक रुपए का नोट छापा गया था।  वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत का पहला नोट एक रुपये की मुद्रा के रूप में छापा गया था। इसके ऊपर सारनाथ के सिंहों वाले अशोक स्तंभ की तस्वीर थी जो बाद में भारत का राष्ट्रीय चिह्न भी बना।
बीसवीं सदी में खाड़ी देशों तथा अरब मुल्कों में भारतीय रुपया मुद्रा के तौर पर प्रचलित था। सोने की तस्करी को रोकने तथा भारतीय मुद्रा के बाहर देशों में प्रचलन को रोकने के लिए मई 1959 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने गल्फ़ रुपी या खाड़ी रुपया का विपणन किया था।
1938 में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट छापे गए थे. 1946 में ये नोट बंद कर दिए गए।  उसके बाद 1954 में इन नोटों को एक बार फिर से जारी किया गया और ये 1978 तक चलन में रहे।
आजादी के बाद वर्ष 1969 से नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर इस्तेमाल की जाने लगी।
भारत पाकिस्तान विभाजन बाद भी पाकिस्तान भारतीय मुद्रा पर अपनी मुहर लगा कर प्रयोग करता था. उन्होंने ऐसा तब तक किया जब तक उनके पास स्वयं कि मुद्रा पर्याप्त मात्र में उपलब्ध नहीं हुई।
भारतीय मुद्रा के नोटों पर गांधी जी की तस्वीर हाथों से बनायीं हुयी नहीं है. ये 1947 में गांधी जी की ली गयी तस्वीर का एक हिस्सा है. वास्तविक तस्वीर में गांधी जी पास ही खड़े एक व्यक्ति की तरफ देख कर हंस रहे हैं.
वर्तमान समय में कपास और कपास के टुकड़ों का प्रयोग कागज की मुद्रा बनाने में होता है.
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि नोट कागज के बनते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि नोट कागज के नहीं बल्कि कपास के बनते हैं। भारत सहित कई देशों के नोट कागज की बजाए कपास के बनाए जाते हैं क्योंकि कपास कागज की तुलना में ज्यादा मजबूत होता है। अतः जल्दी से फटता नहीं है नोट बनाने के लिए कपास के कच्चे माल को उपयोग में लिया जाता है और नोट बनाने से पहले कपास को एक खास प्रक्रिया से गुजारा जाता है।
नोट बनाने के लिए एक सीक्रेट फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है – नोट बनाने से पहले कपास की ब्लीचिंग और धुलाई की जाती है और फिर इसकी लुगदी तैयार की जाती है फिर इस लुगदी को कागज की एक लंबी सीट में तब्दील करने के लिए सिलेंडर मोल्ड पेपर मशीन का उपयोग किया जाता है और इसी दौरान नोट में वॉटरमार्क जैसे कई सिक्योरिटी फीचर्स भी डाले जाते हैं। हालांकि नकली नोटों के प्रचलन को रोकने के लिए इसका असली फार्मूला तो सरकार के द्वारा सीक्रेट ही रखा गया है।

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