स्टॉकहोम (स्वीडन)। ब्रिटेन के आलीशान जहाज ‘टाइटेनिक’ का नाम तो संभवतः दुनिया के हर हिस्से मे काफी चर्चा में रहा है लेकिन 17वीं शताब्दी के स्वीडन के सबसे शक्तिशाली युद्धपोत ‘वासा’ के बारे में शायद ही लोगों को पता हो, जो अपनी पहली ही यात्रा में बाल्टिक सागर में समा गया था और करीब 300 साल तक समुद्र की गहराइयों में रहने के बाद उसे बाहर निकालकर संग्रहालय का रूप दिया गया था।
‘टाइटेनिक’ सन् 1912 में अपनी पहली यात्रा में उत्तरी अटलांटिक महासागर में डूब गया था जबकि उससे 284 साल पहले ‘वासा’ के साथ भी ऐसा ही हुआ था। 50 मीटर ऊंचा, 68 मीटर लंबा और 11.7 मीटर चौड़ा तथा 64 तोपों से सुसज्जित ‘वासा’ 17वीं शताब्दी के सबसे बड़े समुंदरी जंगी जहाजों में से एक था।
अपने पहले ही सफर मे सिर्फ 20 मिनट में महज 1300 मीटर की दूरी तय करने पर ही डूब जाने वाले समुंदरी जंगी जहाज वासा का जब 1628 में स्टॉकहोम की खाड़ी से सफर शुरू हो रहा था उस समय इस पर 150 व्यक्ति सवार थे। इनमें से अधिकांश ने समुद्र में छलांग लगाकर अपनी जान बचा ली लेकिन 25 लोग मारे गए। अपने समय मे वासा दुनिया का सबसे हाई-टेक जंगी जहाज था। इस जहाज को स्वीडन के राजा गुस्ताव द्वितीय एडोल्फ ने बनवाया था। गुस्ताव द्वितीय एडोल्फ अपनी नौसेना के लिए ज़्यादा से ज़्यादा जंगी जहाज बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस विशाल जहाज को बनाने का आदेश दिया था। यह संसार के उन शुरुआती युद्धपोतों में से एक था, जिन पर तोपों के दो डेक थे। वासा स्वीडन की नौसेना का अग्रणी युद्धपोत होता, लेकिन इस विशाल और सुसज्जित जहाज का गौरव ज़्यादा दिनों तक टिक ही नहीं पाया।
जहाज डूबने के बाद, की गई जांच में पाया गया कि जहाज असंतुलित था। लेकिन ऐसा होने की वजह क्या थी, यह आज भी बहस का मुद्दा है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जहाज की डिजाइन ग़लत थी। दूसरों का मानना है कि जहाज पर लगी तोपों का वजन उचित तरीके से बंटा हुआ नहीं था। वासा को लकड़ी पर विस्तृत नक्काशी करके सजाया गया था। उसकी नक्काशियां स्वीडन के एक शाही खानदान की कहानियां बताती थीं। साथ ही इसमें सैकड़ों रंगीन कलाकृतियां लगाई गई थीं जिनमें से कई जर्मनी में बनी थीं। उन पर चटख रंगों का प्रयोग किया गया था। पोत में 450 से अधिक लोग रह सकते थे और यह उस जमाने के सबसे शक्तिशाली पोतों में से एक था, 300 साल तक समुद्र की तली में रहने के बाद इसे 1956 में खोजा गया था। इसे निकालने में तकरीबन 5 साल लगे थे। 1961 में जब यह जहाज खाड़ी से बाहर आया तो विशेषज्ञों ने देखा कि जहाज की लकड़ियों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। लकड़ी पर की गई नक्काशियां भी सुरक्षित थीं। यह जहाज अब स्टॉकहोम का वासा म्यूजियम कहलाता है। वहां की डायरेक्टर लीसा मैन्सन कहती हैं, "वासा 98 फीसदी ऑरिजिनल है जो कि दुनिया में अद्वितीय है।" मूल स्वरूप में होने के कारण ही यह 17वीं सदी का सबसे संरक्षित जहाज कहलाता है। उस समय का इतने बड़े आकार का कोई दूसरा जहाज नहीं है जिसे इतने अच्छे से संभालकर रखा गया हो। स्वीडन का वासा म्यूज़ियम बाल्टिक ने बचाया, वासा के सुरक्षित रहने की एक वजह ये थी कि यह बाल्टिक सागर में डूबा था। बाल्टिक सागर में ठंड और ऑक्सीजन की कमी के कारण यह जहाज बैक्टीरिया और लकड़ी खाने वाले कीडों से बचा रह गया. बाल्टिक सागर के ताजे पानी में लकड़ियों को खाने वाले कीड़े उतने नहीं होते जितने खारे पानी में होते हैं। म्यूजियम ने इस जहाज के डूबने और 300 साल बाद इसे निकालने की एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई है, जिसे म्यूजियम मे आने वाले दर्शकों को दिखाया जाता है। अब कई सालों बाद इस जहाज के दोबारा डूब जाने की आशंका हो रही है। यह जहाज एक तरफ झुकना शुरू हो गया है। वासा का वास्तु, मस्तूल पतवार और इसकी नक्काशी असाधारण है। इसीलिए पुरातत्व विभाग की देखरेख में इसके संरक्षण का काम चल रहा है
पहले सफर पर सिर्फ़ 20 मिनट के अंदर यह जहाज डूब गया और उसके 30 सवारों की मौत हो गई। म्यूज़ियम में प्रदर्शनी के लिए रखा गया यह जंगी जहाज वासा समुद्र के नीचे 300 सालों तक समुद्र की तली में पड़ा रहा, जब तक कि पुरातत्व विभाग वालो ने उसे निकाल नहीं लिया। उन्होंने इस जहाज को संरक्षित किया और इसे स्कैंडिनेविया के सबसे लोकप्रिय म्यूजियम में बदल दिया है। वासा के तुरंत डूबने की कहानी नौसेना पोत के वास्तुशिल्प इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य है। इसे सबसे बड़ी नाकामियों में भी शुमार किया जाता है. तूफानी हवाओं के कारण यह जहाज एक तरफ झुक गया था। बदकिस्मती से तोप की नली के लिए बनाए गए सुराख खुले हुए थे। उन सुराखों से पानी आने लगा जिससे जहाज और झुकने लगा और आख़िरकार डूब गया। इस जहाज के पहले सफर को देखने के लिए भीड़ इकट्ठा थी। उनकी आंखों के सामने यह जहाज सागर में समा गया. इस नाकामी को राष्ट्रीय तबाही बताया गया। वासा तीन सौ सालों तक समुद्र की तलहटी में पड़ा रहा, जब तक कि पुरातत्व विभाग ने उसे निकाल नहीं लिया
पोत शिल्प के विशेषज्ञ नहीं चाहते कि वासा की त्रासदी का इतिहास फिर से दोहराया जाए, इसलिए जहाज की मरम्मत की जा रही है ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे। म्यूजियम की डायरेक्टर लीसा मैन्सन कहती हैं कि "यदि हम कुछ न करें तब भी यह जहाज साल में एक मिलीमीटर झुक रहा है।" "हम नहीं चाहते कि आगे भी ऐसा ही होता रहे, क्योंकि ऐसा होने पर एक समय आएगा जब जहाज पूरी तरह पलटकर डूब जाएगा।" वासा का वास्तु, मस्तूल पतवार और इसकी नक्काशी असाधारण है। इसीलिए पुरातत्व विभाग की देखरेख में इसके संरक्षण का काम चल रहा है। लीसा मैन्सन कहती हैं, "कई लोग मुझसे पूछते हैं कि यह संग्रहालय इतना सफल कैसे है क्योंकि इसकी बुनियाद एक नाकामी पर टिकी है।" "मुझे लगता है कि नाकामियां इंसान के क्रमिक विकास के अहम हिस्से हैं। कामयाबी पाने के लिए हमें नाकाम होने का जोख़िम उठाने से घबराना नहीं चाहिए।"
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वासा एक समुन्द्री जंगी जहाज
‘टाइटेनिक’ सन् 1912 में अपनी पहली यात्रा में उत्तरी अटलांटिक महासागर में डूब गया था जबकि उससे 284 साल पहले ‘वासा’ के साथ भी ऐसा ही हुआ था। 50 मीटर ऊंचा, 68 मीटर लंबा और 11.7 मीटर चौड़ा तथा 64 तोपों से सुसज्जित ‘वासा’ 17वीं शताब्दी के सबसे बड़े समुंदरी जंगी जहाजों में से एक था।
अपने पहले ही सफर मे सिर्फ 20 मिनट में महज 1300 मीटर की दूरी तय करने पर ही डूब जाने वाले समुंदरी जंगी जहाज वासा का जब 1628 में स्टॉकहोम की खाड़ी से सफर शुरू हो रहा था उस समय इस पर 150 व्यक्ति सवार थे। इनमें से अधिकांश ने समुद्र में छलांग लगाकर अपनी जान बचा ली लेकिन 25 लोग मारे गए। अपने समय मे वासा दुनिया का सबसे हाई-टेक जंगी जहाज था। इस जहाज को स्वीडन के राजा गुस्ताव द्वितीय एडोल्फ ने बनवाया था। गुस्ताव द्वितीय एडोल्फ अपनी नौसेना के लिए ज़्यादा से ज़्यादा जंगी जहाज बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस विशाल जहाज को बनाने का आदेश दिया था। यह संसार के उन शुरुआती युद्धपोतों में से एक था, जिन पर तोपों के दो डेक थे। वासा स्वीडन की नौसेना का अग्रणी युद्धपोत होता, लेकिन इस विशाल और सुसज्जित जहाज का गौरव ज़्यादा दिनों तक टिक ही नहीं पाया।
जहाज डूबने के बाद, की गई जांच में पाया गया कि जहाज असंतुलित था। लेकिन ऐसा होने की वजह क्या थी, यह आज भी बहस का मुद्दा है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जहाज की डिजाइन ग़लत थी। दूसरों का मानना है कि जहाज पर लगी तोपों का वजन उचित तरीके से बंटा हुआ नहीं था। वासा को लकड़ी पर विस्तृत नक्काशी करके सजाया गया था। उसकी नक्काशियां स्वीडन के एक शाही खानदान की कहानियां बताती थीं। साथ ही इसमें सैकड़ों रंगीन कलाकृतियां लगाई गई थीं जिनमें से कई जर्मनी में बनी थीं। उन पर चटख रंगों का प्रयोग किया गया था। पोत में 450 से अधिक लोग रह सकते थे और यह उस जमाने के सबसे शक्तिशाली पोतों में से एक था, 300 साल तक समुद्र की तली में रहने के बाद इसे 1956 में खोजा गया था। इसे निकालने में तकरीबन 5 साल लगे थे। 1961 में जब यह जहाज खाड़ी से बाहर आया तो विशेषज्ञों ने देखा कि जहाज की लकड़ियों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। लकड़ी पर की गई नक्काशियां भी सुरक्षित थीं। यह जहाज अब स्टॉकहोम का वासा म्यूजियम कहलाता है। वहां की डायरेक्टर लीसा मैन्सन कहती हैं, "वासा 98 फीसदी ऑरिजिनल है जो कि दुनिया में अद्वितीय है।" मूल स्वरूप में होने के कारण ही यह 17वीं सदी का सबसे संरक्षित जहाज कहलाता है। उस समय का इतने बड़े आकार का कोई दूसरा जहाज नहीं है जिसे इतने अच्छे से संभालकर रखा गया हो। स्वीडन का वासा म्यूज़ियम बाल्टिक ने बचाया, वासा के सुरक्षित रहने की एक वजह ये थी कि यह बाल्टिक सागर में डूबा था। बाल्टिक सागर में ठंड और ऑक्सीजन की कमी के कारण यह जहाज बैक्टीरिया और लकड़ी खाने वाले कीडों से बचा रह गया. बाल्टिक सागर के ताजे पानी में लकड़ियों को खाने वाले कीड़े उतने नहीं होते जितने खारे पानी में होते हैं। म्यूजियम ने इस जहाज के डूबने और 300 साल बाद इसे निकालने की एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई है, जिसे म्यूजियम मे आने वाले दर्शकों को दिखाया जाता है। अब कई सालों बाद इस जहाज के दोबारा डूब जाने की आशंका हो रही है। यह जहाज एक तरफ झुकना शुरू हो गया है। वासा का वास्तु, मस्तूल पतवार और इसकी नक्काशी असाधारण है। इसीलिए पुरातत्व विभाग की देखरेख में इसके संरक्षण का काम चल रहा है
पहले सफर पर सिर्फ़ 20 मिनट के अंदर यह जहाज डूब गया और उसके 30 सवारों की मौत हो गई। म्यूज़ियम में प्रदर्शनी के लिए रखा गया यह जंगी जहाज वासा समुद्र के नीचे 300 सालों तक समुद्र की तली में पड़ा रहा, जब तक कि पुरातत्व विभाग वालो ने उसे निकाल नहीं लिया। उन्होंने इस जहाज को संरक्षित किया और इसे स्कैंडिनेविया के सबसे लोकप्रिय म्यूजियम में बदल दिया है। वासा के तुरंत डूबने की कहानी नौसेना पोत के वास्तुशिल्प इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य है। इसे सबसे बड़ी नाकामियों में भी शुमार किया जाता है. तूफानी हवाओं के कारण यह जहाज एक तरफ झुक गया था। बदकिस्मती से तोप की नली के लिए बनाए गए सुराख खुले हुए थे। उन सुराखों से पानी आने लगा जिससे जहाज और झुकने लगा और आख़िरकार डूब गया। इस जहाज के पहले सफर को देखने के लिए भीड़ इकट्ठा थी। उनकी आंखों के सामने यह जहाज सागर में समा गया. इस नाकामी को राष्ट्रीय तबाही बताया गया। वासा तीन सौ सालों तक समुद्र की तलहटी में पड़ा रहा, जब तक कि पुरातत्व विभाग ने उसे निकाल नहीं लिया
पोत शिल्प के विशेषज्ञ नहीं चाहते कि वासा की त्रासदी का इतिहास फिर से दोहराया जाए, इसलिए जहाज की मरम्मत की जा रही है ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे। म्यूजियम की डायरेक्टर लीसा मैन्सन कहती हैं कि "यदि हम कुछ न करें तब भी यह जहाज साल में एक मिलीमीटर झुक रहा है।" "हम नहीं चाहते कि आगे भी ऐसा ही होता रहे, क्योंकि ऐसा होने पर एक समय आएगा जब जहाज पूरी तरह पलटकर डूब जाएगा।" वासा का वास्तु, मस्तूल पतवार और इसकी नक्काशी असाधारण है। इसीलिए पुरातत्व विभाग की देखरेख में इसके संरक्षण का काम चल रहा है। लीसा मैन्सन कहती हैं, "कई लोग मुझसे पूछते हैं कि यह संग्रहालय इतना सफल कैसे है क्योंकि इसकी बुनियाद एक नाकामी पर टिकी है।" "मुझे लगता है कि नाकामियां इंसान के क्रमिक विकास के अहम हिस्से हैं। कामयाबी पाने के लिए हमें नाकाम होने का जोख़िम उठाने से घबराना नहीं चाहिए।"
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वासा एक समुन्द्री जंगी जहाज