पितामह भीष्म महाभारत का एक ऐसा पात्र जिन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था अर्थात् जब तक वे स्वयं न चाहें ,मृत्यु उन्हें स्पर्श नहीं कर सकती थी। कहा जाता है कि अर्जुन ने उनका वध किया था किन्तु यह कहना कदाचित सही नहीं होगा क्योंकि अर्जुन ने तो सिर्फ उन्हे बाणों से बींध दिया था अतः मृत्यु को प्राप्त तो वे स्वयं अपनी इच्छा से हुए थे
युद्ध के नोवें दिन जब दुर्योधन ने पितामाह भीष्म से कहा कि हे पितामाह आप निष्पक्ष होकर युद्ध नहीं कर रहे है आप सिर्फ पांडवों की सेना को खत्म कर रहे है किन्तु पांडवों को मृत्यु देने के लिए आप उन पर अस्त्र शस्त्र का प्रयोग नहीं कर रहे है अन्यथा पांडव अभी तक जीवित नहीं रहते। तब दुर्योधन के उकसाने पर पितामाह भीष्म अर्जुन को मारने के लिए भीषण युद्ध करते है जिससे क्रोधित होकर श्री कृष्ण पितामाह को मारने के लिए रथ का पहियाँ उठाकर उनकी ओर दौड़ते है किन्तु भीष्म धनुष छोड़कर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है और कहते है कि हे देवकी नंदन मैं धन्य हो जाऊंगा यदि मुझे आपके हाथों मृत्यु को प्राप्त करने का सौभाग्य मिलेगा। मुझे मेरे अनजाने में किए गए पापों से अवश्य मुक्ति मिल जाएगी अतः आपसे युद्ध भूमि में शस्त्र उठवाने की आज मेरी वह प्रतिज्ञा भी पूर्ण हुई। इधर अर्जुन भी श्री कृष्ण के पैरों में गिरकर पितामाह को ना मारने और अपनी युद्ध ना करने की प्रतिज्ञा को ना तोड़ने का अनुसरण करते है तब श्री कृष्ण कहते है कि हे अर्जुन ऐसा करना अनिवार्य था तुम यह न समझो की पितामाह की शक्ति के कारण मैंने शस्त्र उठाया है अपितु उनकी भक्ति के कारण मैंने शस्त्र उठाया है भक्ति और शक्ति के मध्य भक्ति सदैव प्रथम स्थान पर रहती है सूर्य अस्त हो जाता है और उस दिन के युद्ध की समाप्ति का बिगुल बज जाता है किन्तु पांडवों के लिए पितामाह भीष्म अगले दिन के युद्ध के लिए चिंता का विषय थे श्री कृष्ण उन्हे सुझाव देते है कि वे खुद पितामाह भीष्म से उनकी मृत्यु का रहस्य जाने। सभी पांडव पितामाह के शिविर में जाते है और उनसे उन्ही को पराजित करने का रहस्य बताने का आग्रह करते है पितामाह भीष्म श्री कृष्ण की ओर देखते है और मंद मंद मुसकाते है और कहते है की हे युधिष्ठिर हे अर्जुन यह मुझे अच्छी तरह ज्ञात है कि धर्म और अधर्म के मध्य इस युद्ध मे मैं अधर्म की ओर खड़ा हूँ किन्तु मैं प्रतिज्ञा बद्ध हूँ कि मैं सदैव हस्तेना पुर के राज सिंहासन की ओर से युद्ध करूंगा पर मैं यह नहीं जानता था कि मेरी यह प्रतिज्ञा एक दिन मुझे मेरे ही कुल का नाश करने के लिए विवश कर देगी। वे कहते है की मैं ऐसा नहीं होने दूँगा और वे पांडवों को बताते है कि मै स्त्रियों पर कभी शस्त्र नहीं उठता हूँ इतना कहकर वे श्री कृष्ण की ओर देखकर मुसकाते है और कहते है की मैंने तुम्हें मुझे पराजित करने का रहस्य बता दिया है अतः इससे आगे का तुम्हारा मार्ग दर्शन स्वयं भगवन श्री कृष्ण करेंगे। वे भली भाँति जानते है कि कल क्या होने वाला है। सभी पांडव और श्री कृष्ण पितामाह को प्रणाम कर शिविर से चले जाते है
अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते है कि हे भगवन पितामाह ने कहा है कि वे किसी स्त्री पर शस्त्र नहीं उठाते किन्तु युद्ध भूमि में नियमों के अनुसार कोई स्त्री तो जा ही नहीं सकती। श्री कृष्ण कहते है कि हे अर्जुन यह सत्य है कि युद्ध भूमि में कोई स्त्री नहीं जा सकती अपितु वह तो जा सकता है जो ना स्त्री हो और ना पुरुष अतः श्री कृष्ण शिखंडी के बारे मे विस्तार पूर्वक बताते है वे बताते है की शिखंडी पूर्व जन्म मे राजा काशिराज की पुत्री अम्बा थी उसकी दो और बहने थी जिनका नाम अम्बिका और अम्बालिका था विवाह योग्य होने पर उनके पिता ने अपनी तीनो पुत्रियों का स्वयंवर रचाया। उस समय पितामाह भीष्म ने अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए काशिराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से हरण कर लिया था अम्बा ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके भीष्म की मृत्यु का कारण बनने का वरदान प्राप्त किया है अतः उसने शिखंडी के रूप में पुनर जन्म लिया है श्री कृष्ण कहते है कि हे अर्जुन तुम कल युद्ध मे शिखंडी को अपने रथ मे साथ रखना।
युद्ध के दसवें दिन बिगुल बजते ही पितामाह भीष्म पांडवों की सेना पर टूट पड़ते है अर्जुन श्री कृष्ण से कहते है कि हे सखा आप रथ को पितामाह के रथ की ओर ले चलिए अर्जुन और पितामाह भीष्म का रथ जैसे ही आमने सामने आता है और जब पितामाह भीष्म अर्जुन के रथ पर शिखंडी को देखते है वे मंद मंद मुसकाते है और जैसे ही वे अर्जुन को मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाते है शिखंडी अर्जुन के सामने खड़े हो जाते है पितामाह भीष्म मुसकुराते है और कमान पर चढ़ा हुआ बाण दूसरी ओर छोड़ देते है तब तक अर्जुन शिखंडी के पीछे से पितामाह भीष्म को अपने बाणों से बींध देते है अतः उनके हाथों से धनुष भी छूट जाता है जब जब अर्जुन पितामह भीष्म पर बाण चलाते भीष्म हर बार अर्जुन को आशीर्वाद देते यशस्वी भव पुत्र, आयुष्मान भव पुत्र। अर्जुन की आँखों से अश्रु धारा बहती रही और वे पितामाह भीष्म पर बाण पर बाण चलाते रहे अर्जुन सैकड़ों बाण उनके शरीर के आर पार कर देते है अंततः वे जमीन पर गिर जाते है उस वक़्त मानो सब कुछ ठहर गया था युद्ध क्षेत्र का हर योद्धा स्थिर हो गया था पितामाह भीष्म दर्द से कराहते हुए बाणों की शैया पर लेट गए। दोनों पक्ष के सभी योद्धा उनके पास आकर खड़े हो गए सब की आखों से अश्रु धारा बह रही थी। दर्द से कराहते हुए पितामाह भीष्म शैया पर लेटे हुए कहते है मेरा सिर लटक रहा है मुझे सिरहाने की आवश्यकता है दुर्योधन दुशासन को तकिया लेकर आने के लिए कहते है किन्तु पितामाह कहते है कि नहीं दुर्योधन वह तकिया इस सरशैया के योग्य नहीं है मुझे उचित सिरहाना वही दे सकता है जिसने मुझे इस सरशैया पर लेटाया है तब अर्जुन उनकी गर्दन के नीचे दो बाण इस तरह मारते है जिससे कि उनकी लटकती हुई गर्दन उस पर टिक जाती है पितामाह भीष्म कहते है कि हे अर्जुन मुझे प्यास लगी है अर्जुन ने अपने गांडीव पर तीर चढ़ाया और पर्जन्यास्त्र का प्रयोग कर धरती पर छोड़ दिया। धरती से अमृततुल्य, सुगंधित जल की धारा निकलने लगती है अतः उस जल को पीकर भीष्म तृप्त हो जाते हैं। पितामाह भीष्म वहाँ एकत्रित सभी योद्धाओं को बताते है कि वे अपने प्राणों का त्याग सूर्य के उतरायण होने पर ही करेंगे जिस से कि उनकी आत्मा को सद्गति मिल सके।
विडिओ देखने के लिए नीचे👇 दिए गए लिंक पर क्लिक करें
अर्जुन और पितामाह भीष्म का युद्ध
युद्ध के नोवें दिन जब दुर्योधन ने पितामाह भीष्म से कहा कि हे पितामाह आप निष्पक्ष होकर युद्ध नहीं कर रहे है आप सिर्फ पांडवों की सेना को खत्म कर रहे है किन्तु पांडवों को मृत्यु देने के लिए आप उन पर अस्त्र शस्त्र का प्रयोग नहीं कर रहे है अन्यथा पांडव अभी तक जीवित नहीं रहते। तब दुर्योधन के उकसाने पर पितामाह भीष्म अर्जुन को मारने के लिए भीषण युद्ध करते है जिससे क्रोधित होकर श्री कृष्ण पितामाह को मारने के लिए रथ का पहियाँ उठाकर उनकी ओर दौड़ते है किन्तु भीष्म धनुष छोड़कर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है और कहते है कि हे देवकी नंदन मैं धन्य हो जाऊंगा यदि मुझे आपके हाथों मृत्यु को प्राप्त करने का सौभाग्य मिलेगा। मुझे मेरे अनजाने में किए गए पापों से अवश्य मुक्ति मिल जाएगी अतः आपसे युद्ध भूमि में शस्त्र उठवाने की आज मेरी वह प्रतिज्ञा भी पूर्ण हुई। इधर अर्जुन भी श्री कृष्ण के पैरों में गिरकर पितामाह को ना मारने और अपनी युद्ध ना करने की प्रतिज्ञा को ना तोड़ने का अनुसरण करते है तब श्री कृष्ण कहते है कि हे अर्जुन ऐसा करना अनिवार्य था तुम यह न समझो की पितामाह की शक्ति के कारण मैंने शस्त्र उठाया है अपितु उनकी भक्ति के कारण मैंने शस्त्र उठाया है भक्ति और शक्ति के मध्य भक्ति सदैव प्रथम स्थान पर रहती है सूर्य अस्त हो जाता है और उस दिन के युद्ध की समाप्ति का बिगुल बज जाता है किन्तु पांडवों के लिए पितामाह भीष्म अगले दिन के युद्ध के लिए चिंता का विषय थे श्री कृष्ण उन्हे सुझाव देते है कि वे खुद पितामाह भीष्म से उनकी मृत्यु का रहस्य जाने। सभी पांडव पितामाह के शिविर में जाते है और उनसे उन्ही को पराजित करने का रहस्य बताने का आग्रह करते है पितामाह भीष्म श्री कृष्ण की ओर देखते है और मंद मंद मुसकाते है और कहते है की हे युधिष्ठिर हे अर्जुन यह मुझे अच्छी तरह ज्ञात है कि धर्म और अधर्म के मध्य इस युद्ध मे मैं अधर्म की ओर खड़ा हूँ किन्तु मैं प्रतिज्ञा बद्ध हूँ कि मैं सदैव हस्तेना पुर के राज सिंहासन की ओर से युद्ध करूंगा पर मैं यह नहीं जानता था कि मेरी यह प्रतिज्ञा एक दिन मुझे मेरे ही कुल का नाश करने के लिए विवश कर देगी। वे कहते है की मैं ऐसा नहीं होने दूँगा और वे पांडवों को बताते है कि मै स्त्रियों पर कभी शस्त्र नहीं उठता हूँ इतना कहकर वे श्री कृष्ण की ओर देखकर मुसकाते है और कहते है की मैंने तुम्हें मुझे पराजित करने का रहस्य बता दिया है अतः इससे आगे का तुम्हारा मार्ग दर्शन स्वयं भगवन श्री कृष्ण करेंगे। वे भली भाँति जानते है कि कल क्या होने वाला है। सभी पांडव और श्री कृष्ण पितामाह को प्रणाम कर शिविर से चले जाते है
अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते है कि हे भगवन पितामाह ने कहा है कि वे किसी स्त्री पर शस्त्र नहीं उठाते किन्तु युद्ध भूमि में नियमों के अनुसार कोई स्त्री तो जा ही नहीं सकती। श्री कृष्ण कहते है कि हे अर्जुन यह सत्य है कि युद्ध भूमि में कोई स्त्री नहीं जा सकती अपितु वह तो जा सकता है जो ना स्त्री हो और ना पुरुष अतः श्री कृष्ण शिखंडी के बारे मे विस्तार पूर्वक बताते है वे बताते है की शिखंडी पूर्व जन्म मे राजा काशिराज की पुत्री अम्बा थी उसकी दो और बहने थी जिनका नाम अम्बिका और अम्बालिका था विवाह योग्य होने पर उनके पिता ने अपनी तीनो पुत्रियों का स्वयंवर रचाया। उस समय पितामाह भीष्म ने अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए काशिराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से हरण कर लिया था अम्बा ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके भीष्म की मृत्यु का कारण बनने का वरदान प्राप्त किया है अतः उसने शिखंडी के रूप में पुनर जन्म लिया है श्री कृष्ण कहते है कि हे अर्जुन तुम कल युद्ध मे शिखंडी को अपने रथ मे साथ रखना।
युद्ध के दसवें दिन बिगुल बजते ही पितामाह भीष्म पांडवों की सेना पर टूट पड़ते है अर्जुन श्री कृष्ण से कहते है कि हे सखा आप रथ को पितामाह के रथ की ओर ले चलिए अर्जुन और पितामाह भीष्म का रथ जैसे ही आमने सामने आता है और जब पितामाह भीष्म अर्जुन के रथ पर शिखंडी को देखते है वे मंद मंद मुसकाते है और जैसे ही वे अर्जुन को मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाते है शिखंडी अर्जुन के सामने खड़े हो जाते है पितामाह भीष्म मुसकुराते है और कमान पर चढ़ा हुआ बाण दूसरी ओर छोड़ देते है तब तक अर्जुन शिखंडी के पीछे से पितामाह भीष्म को अपने बाणों से बींध देते है अतः उनके हाथों से धनुष भी छूट जाता है जब जब अर्जुन पितामह भीष्म पर बाण चलाते भीष्म हर बार अर्जुन को आशीर्वाद देते यशस्वी भव पुत्र, आयुष्मान भव पुत्र। अर्जुन की आँखों से अश्रु धारा बहती रही और वे पितामाह भीष्म पर बाण पर बाण चलाते रहे अर्जुन सैकड़ों बाण उनके शरीर के आर पार कर देते है अंततः वे जमीन पर गिर जाते है उस वक़्त मानो सब कुछ ठहर गया था युद्ध क्षेत्र का हर योद्धा स्थिर हो गया था पितामाह भीष्म दर्द से कराहते हुए बाणों की शैया पर लेट गए। दोनों पक्ष के सभी योद्धा उनके पास आकर खड़े हो गए सब की आखों से अश्रु धारा बह रही थी। दर्द से कराहते हुए पितामाह भीष्म शैया पर लेटे हुए कहते है मेरा सिर लटक रहा है मुझे सिरहाने की आवश्यकता है दुर्योधन दुशासन को तकिया लेकर आने के लिए कहते है किन्तु पितामाह कहते है कि नहीं दुर्योधन वह तकिया इस सरशैया के योग्य नहीं है मुझे उचित सिरहाना वही दे सकता है जिसने मुझे इस सरशैया पर लेटाया है तब अर्जुन उनकी गर्दन के नीचे दो बाण इस तरह मारते है जिससे कि उनकी लटकती हुई गर्दन उस पर टिक जाती है पितामाह भीष्म कहते है कि हे अर्जुन मुझे प्यास लगी है अर्जुन ने अपने गांडीव पर तीर चढ़ाया और पर्जन्यास्त्र का प्रयोग कर धरती पर छोड़ दिया। धरती से अमृततुल्य, सुगंधित जल की धारा निकलने लगती है अतः उस जल को पीकर भीष्म तृप्त हो जाते हैं। पितामाह भीष्म वहाँ एकत्रित सभी योद्धाओं को बताते है कि वे अपने प्राणों का त्याग सूर्य के उतरायण होने पर ही करेंगे जिस से कि उनकी आत्मा को सद्गति मिल सके।
विडिओ देखने के लिए नीचे👇 दिए गए लिंक पर क्लिक करें
अर्जुन और पितामाह भीष्म का युद्ध