मांडू का इतिहास


                                                           मांडू का इतिहास 

 भारतीय इतिहास अपने मे बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है जिनमें इमारतों, किलों और महल इत्यादि का अपना ही एक अलग महत्व है आज दुनिया मे ना जाने कितनी ही सुन्दर और बड़ी-बड़ी इमारतों और आवासों का निर्माण किया जाता हो लेकिन जिस वास्तुकला और तकनीक का प्रयोग इतिहास में किया गया है उस तरह की वास्तुकला और तकनीक का उपयोग शायद ही आने वाले समय में कभी किया जाए।  आज हम आपको ले चलते है एक ऐसे शहर की ओर जिसे चारों तरफ से ऐतिहासिक किलों ने घेरा हुआ है जहां की दीवारें आज भी वही कहानी बयां करती है जो 300 साल पहले किया करती थी। इंदौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के ख़ज़ानों में बेशकीमती हीरे की तरह चमकता बड़ा ही खूबसूरत शहर मांडू जिसे खुशियों का शहर भी कहा जाता है। यह विंध्यांचल  की पहाड़ियों पर लगभग 2,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। 

8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक चक्रवर्ती सम्राट राजा परमार भोज के वंशजों ने मालवा की राजधानी धारा नगरी पर राज्य किया था। मांडू की स्थापना का श्रेय परमार राजाओं को ही जाता है। राजा हर्ष, राजा मुंज, राजा सिंधु और अंतिम राजा भोज परमार वंश के प्रसिद्ध शासक थे, किन्तु उनका ध्यान मांडू की अपेक्षा धार नगरी पर कहीं ज्यादा था। धार मांडू से केवल 35 किमी. दूरी पर है। परमार राजाओं के अभिलेखों में मांडू का उल्लेख मंडपा दुर्ग और शाही निवास के रूप में किया गया है।  विक्रम संवत के एक शिलालेख के अनुसार छठी शताब्दी में मांडू एक समृद्ध और विकसित नगर था। उस समय इसे ऋषि माण्डलच्य या मांडवी के नाम से जाना जाता था। पूर्व मध्यकाल में पड़ोसी राज्यों के लगातार आक्रमण की वजह से राजधानी धार से बदलकर मांडू कर दी गई क्योंकि धार मैदानी इलाके में बसा है जबकि मांडू पहाड़ी क्षेत्र में जो की पूरी तरह सुरक्षित था।    

परमार शासक समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार राजधानी को कभी धार कभी मांडू बदलते रहते थे। 1300 ई. के आखिर से 1400 ई. तक दिलावर खां गोरी ने मांडू पर शासन किया। उसने मांडू का नाम बदलकर शादियाबाद कर दिया था, जिसका हिंदी अर्थ 'खुशियों की नगरी' होता है।

मांडू की खंडहर हो चुकी इमारतें हमें इतिहास के उन शासकों की विशाल एवं समृद्ध विरासत और शानो-शौकत से रूबरू करवाती हैं जिन्होंने कभी यहाँ राज किया था शहर मे प्रवेश करने के लिए यहाँ के शानदार एवं विशाल दरवाज़े इस तरह स्वागत करते हैं, मानों हम किसी समृद्ध शासक के नगर में प्रवेश कर रहे हों। मांडू में लगभग 12 प्रवेश द्वार हैं, जो 45 किलोमीटर के दायरे में निर्मित है। इन दरवाज़ों में 'दिल्ली दरवाज़ा' सबसे प्रमुख है,जो मांडू का प्रवेश द्वार है। इस दरवाज़े में प्रवेश करते ही अन्य दरवाज़ों की शुरुआत के साथ ही मांडू की इमारतों की स्थापत्य वास्तुकला के सौन्दर्य की शुरुआत हो जाती है। मांडू में प्रवेश करते ही सबसे पहले कांकड़ा खोह दिखता है, जहां सैलानियों की खासी भीड़ उमड़ती है। गहरी खाई के आसपास का खूबसूरत नजारा और झरनों की कलकल सैलानियों को खूब लुभाती है। यहां से विंध्याचल पर्वत की सुन्दर  वादियां नजर आती हैं।  मांडू के प्रमुख दरवाज़ों में आलमगीर दरवाज़ा, राम-गोपाल दरवाज़ा, जहाँगीर दरवाज़ा, तारापुर दरवाज़ा, कमानी दरवाजा, गाड़ी दरवाजा आदि अनेक दरवाज़े हैं। मांडू को 'मांडवगढ़' के नाम से भी जाना जाता है। 

महान कवि अबुल फज़ल के अनुसार मांडू की नक्काशी इस तरह की गई है की किसी को भी भ्रमित कर सकती है मांडू के लिए उन्होंने कहा है कि यह पर्स पत्थर की देन है। पहाड़ों व चट्टानों के इस इलाके में ऐतिहासिक महत्व की कई पुरानी इमारतें आज भी समय की कसौटी पर खरी उतरती हैं। मालवा के राजपूत परमार शासक बाहरी आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए मांडू को एक महफूज जगह मानते थे। मांडू की बेहतरीन वास्तुकला देखने के लिए दूर−दूर से पर्यटक आते हैं। यहां की छोटी−छोटी पहाड़ियों पर बने खूबसूरत किले हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं। हालांकि समय के बहाव मे इनका सौन्दर्य भी बह गया है किन्तु इनका आकर्षण अभी भी उतना ही है। 15वीं शताब्दी में जब यहां मालवा का शासन शुरू हुआ, तब बहुत सारे महल बनवाए गए जैसे जहाज महल, हिंडोला महल और रूपमती महल। मांडू का इतिहास एक विशाल साम्राज्य की कहानी कहता है। अफगान शासक, मालवा, मोहम्मद शाह, मुगल और फिर अंत में मराठों ने इस पर राज्य किया। 1732 में यह मराठों के हाथ में चला गया। मांडू को 'मांडवगढ़ जैन तीर्थ' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा में विराजित श्वेत वर्णी सुंदर प्राचीन प्रतिमा है। इस प्रतिमा की स्थापना सन् 1472 में की गई थी। मांडवगढ़ में कई अन्य पुराने ऐतिहासिक महत्व के जैन मंदिर भी है, जिसके कारण यह जैन धर्म के लोगों के लिए एक तीर्थ स्थान है।


मांडू में देखने के लिए बहुत कुछ है जैसे जहाज महल, हिंडोला महल, नीलकंठ मंदिर, रेखा कुंड, रानी रूपमती मंडप, होशंग शाह का मकबरा, जामा मस्जिद, अशरफी महल, लोहानी गुफाएँ और उनके सामने स्थित सनसेट पॉइंट, हाथी महल, दरिया खान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मघत की मस्जिद और जाली महल इन सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग कहानी है

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मांडू का इतिहास(The History of Mandu)