Jahaj Mahal

                                                               जहाज महल                                                     

भारतीय संस्कृति मे जगमगाते दीपक के समान मध्य प्रदेश में अनेक पर्यटक स्थल है जिनमे से एक है मांडू।  मांडू को बारिश के मौसम में देखा जाए तो इसकी सुंदरता के विषय मे बयां करने के लिए शब्द कम पड़ जाते है इस मौसम में इसकी प्राकृतिक सौन्दर्यता देखते ही बनती है मांडू में भी बहुत से ऐतिहासिक पर्यटक स्थल है पर उनमे से एक है जहाज महल  जो कि मध्य प्रदेश या भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी अैलोकिक सुन्दरता और बनावट के लिए बहुत प्रसिद्ध है 

जहाज महल का निर्माण सन् 1469-1500 ईस्वी के मध्य गयासुद्दीन खिलजी के द्वारा करवाया गया था। ये महल खास तौर पर महिलाओं के रहने के लिए बनवाया गया था। गयासुद्दीन खिलजी की सारी बेगम इसी महल मे रहती थी और इसे हरम कहा जाता था। कहा जाता है इस महल में कई हजार महिलाएं रहती थीं। दोनों तरफ से तालाब से घिरा हुआ यह महल जहाज की आकृति में बनवाया गया है। इसलिए इसे जहाज महल कहा जाता है। मुंज और कपूर नाम के दो आर्टिफिशयल तालाबों के बीच में बना यह महल दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो पानी मे तैरता जहाज खड़ा हो इसलिए इसे “द शिप पैलेस ” के नाम से भी जाना जाता है महल के दोनों तरफ बने तालाब गर्मियों के दिनों में इमारत को ठंडा रखने के लिए बनाए गए थे। इसके दोनों तरफ एक बड़ा बगीचा भी है।

जहाज महल दो मंजिल मे बना है जिसकी चौड़ाई लगभग 15 मीटर है और लंबाई 120 मीटर। पहली मंजिल मे तीन बड़े बड़े कक्ष बनाए गए है जिनके बीच मे गलियारे भी बने हुए है ये महल अफगानिस्तान से आए आर्किटेक्ट के द्वारा बनवाया गया था। महल में दो कुंड भी बने हैं। जिसमें से एक पहली मंजिल पर और दूसरा छत पर बना है। प्रत्येक कुंड में करीब 30 हजार लीटर पानी भरा जा सकता है। कमल की शेप में बना कुंड खास तौर पर महिलाओं के लिए बनवाया गया था। जिसे कमल कुंड कहा जाता है। महल के अंदर कई बावडिय़ां भी हैं। इनमें से एक उजाला बावड़ी ऊपर से खुली हुई है। जिसे पीने के पानी के लिए इस्तेमाल किया जाता था। आजकल इससे महल के पास बने बगीचे को पानी देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। गलियारों के पास बने कमरों के पीछे बहुत बड़ा और सुंदर मंडप बना है, जहाँ से मुंज सागर लेक बड़ा ही आकर्षक दिखता है।  जैसे जहाज़ में चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती है, ठीक वैसे ही इस महल में भी पत्थरों की कलात्मक सीढ़ियां बनाई गई है। इसकी छत 62 मीटर लम्बी और 14 मीटर चौड़ी है। इसकी दोनों मंज़िलों में बने हुए कुंड में रहट तकनीक से पानी चढ़ाया जाता था। 

रहट तकनीक को खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता था इस तकनीक को दो बैलों की मदद से चलाया जाता था। रहट सिंचाई में एक धुरी से दो बैलों को इस तरह बांधा जाता था कि वो गोल चक्कर काटते रहें। दूसरी ओर किसी पारम्परिक कुंए के ऊपर लकड़ी या अन्य धातु का गोल घेरा लगाकर उस पर चेन या रस्सी के माध्यम से बाल्टियां बांधी जाती थी। अब इन बाल्टियों की चेन और बैलों की धुरी को इस तरह जोड़ा जाता था कि जब बैल गोल घूमें तो धुरी के माध्यम से पैदा यांत्रिक ऊर्जा से बाल्टियों की भी चेन घूमने लगे और कुंए से पानी निकालकर कहीं पर भी ले जाया जा सकता था। महल की छत और दीवारों पर प्लास्टर किया गया है। कहा जाता है कि इस महल की बागडोर की पूरी व्यवस्था महिलाओं के हाथ मे ही थी ब्रिटिशकाल में यह महल खंडहर हो गया था। 1951 में यह एएसआई को हैंडओवर किया गया। इसकी प्राचीन पद्धति अनुसार चूना, गुड़, उड़द दाल, रेत व सुर्खी का इस्तेमाल कर मरम्मत की गई, अतः उद्यान विकसित किया गया।

केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने देश के 25 स्मारकों सहित मांडू के जहाज महल को भी आदर्श स्मारक योजना में शामिल किया है। स्मारक के विकास एवं देखरेख का काम एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) को ही सौंपा गया है।

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जहाज महल की पूरी जानकारी