Roopmati Mahal

                                     मिशाल एक ऐसी प्रेम कहानी की जिसने 

                                                दिल्ली के सुल्तान अकबर को भी झुका दिया था ।। 

एक ऐसा महल जहां के राजा और रानी के प्रेम के गीत के मधुर स्वर आज भी गूँजते है ये महल गवाह है उन दोनों के अमर प्रेम की कहानी का जिन्होंने एक दूजे के साथ वफ़ा निभाने के लिए खुद को परवान कर दिया था। ये आलीशान महल राजा बाज बहादुर ने अपनी रानी रूपमती के लिए बनवाया था। कहा जाता है कि रानी रूपमती सुबह उठकर माँ नर्मदा के दर्शन करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती थी। 


उन्होंने रानी रूपमती के लिए 3500 फीट की ऊंचाई पर एक किला बनवाया ताकि रानी लगभग 24 किलो मीटर दूर नर्मदा नदी के दर्शन वहीं से आसानी से कर सके। आज भी रानी रूपमती के किले से नर्मदा नदी नजर आती है। रानी के महल से पहले ही बाज बहादुर ने अपना महल बनवा लिया था जो कि पहाड़ी पर रूपमती महल से लगभग 3.5 km नीचे की ओर है ताकि रानी तक पहुंचने से पहले दुश्मन को पहले राजा बाज बहादुर का सामना करना पड़े। रानी के महल में विशाल आंगन और हॉल बनाये गए हैं। कुछ हॉल तो इस तरह से बनाए गए हैं कि यदि कोई सामान्य व्यक्ति भी गीत गुनगुनाता है तो दूसरे हॉल में वह बहुत ही मनमोहक स्वर में सुनाई देता हैं।

कहते है कि रानी रूपमती और राजा बाज बहादुर की प्रेम कहानी संगीत से ही शुरू हुई थी एक बार रानी रूपमती जिनका जन्म स्थान और जाती विवादित है कुछ इतिहासकार उन्हे किसान की बेटी, कुछ ब्राह्मण की, तो कुछ राजपूत बताते है वह एक अच्छी गायिका भी थी वे वन में गीत गा रही थी उनके मधुर गीत के स्वर राजा बाज बहादुर को सुनायी दिए जो कि स्वयं एक बहुत अच्छे गायक और संगीत प्रेमी थे, वह उसी वक़्त रानी रूपमती को देखकर उनके और उनकी गायिका के कायल हो गए। अतः उन्होंने रानी रूपमती से विवाह करने का प्रस्ताव किया। रानी रूपमती भी उन्हे मन ही मन प्रेम करती थी फिर क्या था अलग अलग धर्म के होने के बावजूद वे विवाह के बंधन में बंध गए। दोनों का विवाहित जीवन बहुत ही सुन्दर सुरमय गीत की तरह चल रहा था और मांडू की प्रजा भी उनसे बहुत प्रसन्न थी। किन्तु कहते है कि सच्चे प्रेमियों के प्रेम को किसी न किसी की नजर लग ही जाती है उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 


उन दिनों दिल्ली में शहंशाह अकबर का झंडा लहरा रहा था। अकबर के सेनानायक अदहम खाँ के नेतृत्व में मुगल सेनाएँ मालवा पर चढ़ आई और सारंगपुर के पास तक जा पहुँची। 29 मार्च, 1561 ई. को मालवा की राजधानी ‘सारंगपुर’ में राजा बाज बहादुर और अदहम खान के बीच युद्ध हुआ जिसमे बाज बहादुर की हार हुई और उन्हे रणभूमि छोड़कर भागना पड़ा। अकबर ने अदहम ख़ाँ को वहाँ की सूबेदारी सौंप दी। उसके  बाद जब अदहम खान ने रानी रूपमती को अपनी प्रेयसी बनाना चाहा तो रानी ने बाज बहादुर के नाम पर हीरा निगल कर अपने प्राण त्याग दिए 1562 ई. में पीर मुहम्मद मालवा का सूबेदार बना। बाज बहादुर ने दक्षिण के शासकों के सहयोग से पुनः मालवा पर अधिकार कर लिया। पीर मुहम्मद भागते समय नर्मदा नदी में डूब कर मर गया। 


इस बार अकबर ने अब्दुल्ला ख़ाँ उजबेग को बाज बहादुर को परास्त करने के लिए भेजा। बाज बहादुर ने पराजित होकर अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। कुछ समय बाद बाज बहादुर बीमार हो गए। बीमार बाजबहादुर ने अकबर से रानी रूपमति के पास वापस सारंगपुर जाने की इच्छा जाहिर की। अकबर ने उनकी इच्छा पूरी करते हुए सारंगपुर भिजवा दिया। यहां बाज बहादुर ने रूपमती की मजार के पास आखिरी सांस ली। दो प्रेमियों को अलग करने की बात ने अकबर को बेचैन कर दिया और सन 1568 में सारंगपुर के समीप एक मकबरे का निर्माण करवाया। बाज बहादुर के मकबरे पर अकबर ने ‘आशिक-ए-सादिक’ और रूपमती की समाधि पर ‘शहीद-ए-वफा’ लिखवाया। मांडू के खंडहर हो चुके किले और महल आज भी राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती के सच्चे प्रेम की गवाही देते हैं और बताते हैं कि कैसे एक सच्चे प्रेम ने हिंदुस्तान के सुल्तान को भी शर्मिंदगी से झुका दिया था। 

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रूपमती महल