सम्राट अशोक, अशोक महान, अशोक द ग्रेट या चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य यह नाम अक्सर आपने किताबों मे पढ़ा होगा या अपने इर्द गिर्द किसी ना किसी से जिक्र अवस्य सुना होगा। किन्तु क्या आप जानते है कि सम्राट अशोक क्या सच में महान राजा थे या सच कुछ और है? नमस्कार मै सुधीर आज हम चर्चा करेंगे भारतीय इतिहास के एक ऐसे शासक के विषय में जिनके जीवन काल और चरित्र को लेकर इतिहासकारों मे अधिकतर मतभेद रहा है
चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य जिनकी गिनती दुनिया के सबसे महान राजाओं में की जाती है। एक योद्धा, जो कलिंग के युद्ध मे लोगों का खून देखकर हिंसक प्रवर्ती से अचानक अहिंसावादी हो गये थे। कलिंग जो आजकल उड़ीसा के नाम से जाना जाता है के साथ युद्ध में महा प्रकोप और विनाश को देखकर उनका मन पिघल गया और ह्रदय परिवर्तन हो गया अतः वे शांति की बातें करने लगे और जगह-जगह स्तम्भ गड़वा दिए जिन पर लिखा था कि कैसे अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए और प्रजा को खुश रखना चाहिए। किन्तु क्या आप जानते है कि ऐसे स्तम्भ कलिंग में नहीं हैं क्यों? वहां तो सबसे पहले होने चाहिए थे। फिर उससे पहले वो कलिंग में गये ही क्यों थे? क्या उन्होंने अपने 99 भाइयों को मारते वक़्त खून नहीं देखा था? आखिर क्यों अशोक के शांति प्रस्ताव के बाद हर राजा ने उनके सामने समर्पण कर दिया और क्यों अशोक के मरते ही उनका सारा साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया?
मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती राजा महान सम्राट अशोक का जन्म ईसा पूर्व 304 में हुआ था. अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था. अशोक के पिता का नाम सम्राट बिन्दुसार तथा माता का नाम रानी धर्मा था. बिंदुसार की 16 पटरानियाँ और सम्राट अशोक को मिलाकर उनके 101 पुत्र थे.। पुत्रों में केवल तीन के नाम ही उल्लेखित हैं, सुसीम, अशोक और तिष्य। राजवंश परिवार के होने के कारण, सम्राट अशोक युद्ध में बचपन से ही निपूर्ण थे। साथ ही वे तलवारबाजी और शिकार में भी निपूर्ण थे। कहा जाता है उनमे इतना बल था कि वह एक लकड़ी की छड़ी से ही एक सिंह को मार डालने कि क्षमता रखते थे।
303 ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य के मरने के बाद, उनके बेटे बिन्दुसार ने अफगानिस्तान से बंगाल तक अपना राज्य बढ़ाया अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम उस समय तक्षशिला का प्रान्तपाल था। तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे। इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था। सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में विद्रोह पनप उठा। राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा। अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के खत्म हो गया। हालाँकि यहाँ पर विद्रोह एक बार फिर अशोक के शासनकाल में हुआ था, पर इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया। अशोक की इस प्रसिद्धि से उनके भाई सुशीम को सिंहासन न मिलने का खतरा बढ़ गया। उसने सम्राट बिंदुसार को कहकर अशोक को निर्वास में डाल दिया। अशोक कलिंग चला गया। वहाँ उसे मत्स्यकुमारी कौर्वकी से प्रेम हो गया। हाल ही में मिले साक्ष्यों के अनुसार बाद में अशोक ने उसे तीसरी या दूसरी रानी बनाया था।
इसी बीच उज्जैन में विद्रोह हो गया। अशोक को सम्राट बिन्दुसार ने निर्वासन से बुलाकर विद्रोह को दबाने के लिए भेज दिया। हालाँकि उसके सेनापतियों ने विद्रोह को दबा दिया पर उसकी पहचान गुप्त ही रखी गई क्योंकि मौर्यों द्वारा फैलाए गए गुप्तचर जाल से उसके बारे में पता चलने के बाद उसके भाई सुशीम द्वारा उसे मरवाए जाने का भय था। वह बौद्ध सन्यासियों के साथ रहा था। इसी दौरान उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा शिक्षाओं का पता चला था। कुछ वर्षों के बाद सुशीम से तंग आ चुके लोगों ने अशोक को राजसिंहासन हथिया लेने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि सम्राट बिन्दुसार वृद्ध तथा रुग्ण हो चले थे।
बिन्दुसार 274 ईसा पूर्व में बीमार होने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गए। लेकिन उसके पहले उन्होंने अपने बेटे सुशीम को प्रिन्स घोषित कर दिया था। किन्तु जिस समय पिता की मृत्यु हुई, सुशीम भारत-अफगानिस्तान सीमा पर थे वे वहाँ से भागते हुए पटना आये, पर वहां पर अशोक पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे ग्रीक योद्धाओं की मदद से गद्दी पर उन्ही का कब्ज़ा था संभवतः सुशीम को गेट पर ही मार दिया गया था एक संभावना ये भी है कि उसको आवां में जिन्दा भून दिया गया था। अतः उसके बाद ही शुरू हुआ था कत्ले-आम का सिलसिला। जो 4 साल तक लगातार चलता रहा। दो बौद्ध ग्रन्थ; दिपवासना और महावासना के अनुसार उन्होंने अपने 99 भाइयों को मार दिया था जब वह आश्रम में थे तब उनको खबर मिली की उनकी माँ को उनके सौतेले भाईयों ने मार डाला, तब उन्होने महल में जाकर अपने सारे सौतेले भाईयों की हत्या कर दी सिर्फ अपने एक तिस्स नाम के भाई को ही जीवित छोड़ा था बताया जाता है कि बहुत से अधिकारियों को भी मारा गया था। अशोक ने 500 अधिकारियों को अपने हाथ से काट डाला था। उसी समय 272 इसा पूर्व में अशोक सिंहासन पर तो बैठ गए थे, परन्तु उनका राज्यभिषेक 269 इसा पूर्व में हुआ और वे मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट बने। सत्ता संभालते ही अशोक ने पूर्व तथा पश्चिम, दोनों दिशा में अपना साम्राज्य फैलाना शुरु किया। उन्होंने आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक साम्राज्य केवल आठ वर्षों में विस्तृत कर लिया था।
अपने शासन काल के दौरान वह अपने साम्राज्य को भारत के सभी उपमहाद्वीपों तक बढ़ने के लिए लगातार 8 वर्षों तक युद्ध करते रहे। कृष्ण गोदावरी के घाटी, दक्षिण में मैसूर में भी उन्होंने कब्ज़ा कर लिया परन्तु तमिल नाडू, केरल और श्रीलंका पर नहीं कर सके। कलिंग के साथ खुनी जंग में 100000 सैनिक और लोगों की मृत्यु हुई। इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु के बाद सम्राट अशोक के मन में बदलाव आगया और उन्होंने प्रण ले लिया कि वह जीवन में कभी युद्ध नहीं करेंगे। उस घटना के बाद सम्राट अशोक नें शांति का मार्ग चुना और पुरे विश्व भर में बौद्ध धर्म और विचारों का जोर-शोर से प्रचार किया। सम्राट अशोक ने बहुत से देशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया। कहा जाता है दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में सम्राट अशोक नें भगवान बुद्ध के अवशेषों को संग्रह करके रखने के लिए 84000 स्तूप बनवाएं।
उनके “अशोक चक्र” जिसको धर्म का चक्र भी कहा जाता है, भारतीय तिरंगे के मध्य में मौजूद है।
मौर्य साम्राज्य के समय की सभी सीमाओं पर 40-50 फीट ऊँचे अशोक स्तम्भ अशोक द्वारा स्थापित किये गये है। अशोक काल में उकेरा गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम 'अशोक चिह्न' के नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। बौद्ध धर्म के इतिहास में गौतम बुद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक का ही स्थान आता है। जब उज्जैन में वह अपने जख्मों को इलाज करा रहे थे तो उनकी मुलाकात, विदिशा की “विदिशा महादेवी साक्या कुमारी” से हुई, जिनसे सम्राट अशोक नें विवाह किया। बाद में उनकी दो संतान भी हुई पुत्र महेंद्र और पुत्रि संघमित्रा जिन्होंने बाद में सीलोन(Ceylon) में जो की आज के दिन श्रीलंका के नाम से जाना जाता है। अशोक को बौद्ध धर्म का प्रचार करने में बहुत सहायता की थी सम्राट अशोक नें पुरे विश्वभर में लोगो को बौद्ध धर्म के प्रति प्रेरित किया। सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध धर्म धर्म का प्रचार किये। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी अन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहुत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णुता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवन प्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है।
उनकी मृत्यु 232 इसा पूर्व में 72 वर्ष कि उम्र में एक शांति और कृपालु राजा के रूप में हुई। जिससे प्रतीत होता है कि उन्होंने शुरुआत में भले ही अधर्म का रास्ता अपनाया हो और क्रूर रहे हो परंतु अंत मे उन्होंने धर्म का रास्ता अपनाया था। अशोक के शासन काल को स्वर्णिम काल के रूप में याद किया जाता है। अशोक ने अपने सिद्धांतों को धम्म नाम दिया था।
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