राणा सांगा
भाग 1
सिर्फ एक हाथ, एक पाँव और एक आँख थी अलावा इसके शरीर पर 80 बड़े-बड़े घाव थे मगर फिर भी जिंदगी के संघर्ष में वे कभी झुके नहीं। जी हाँ हम बात कर रहे है महाराणा संग्राम सिंह की जिन्हे राणा सांगा के नाम से जाना जाता है। राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1472 को चित्तौड़ दुर्ग में हुआ था, भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में बहुत से शूरवीरों का जिक्र मिलता है जिनमें इनका भी नाम दर्ज है वैसे तो मेवाड़ के हर राणा की तरह इनका भी पूरा जीवन युद्ध के इर्द-गिर्द ही बीता लेकिन इनकी कहानी कुछ अलग है ।
बात 15 वीं सदी के अंतिम चरण की है जिस समय दिल्ली में लोधी वंश का परचम लहरा रहा था और गुजरात में बहादुर शाह का, उस समय ये दोनों ही राज्य बहुत शक्तिशाली थे जिनके बीच में था मेवाड़ जहाँ महाराणा रायमल जी का शासन था। जब-जब दिल्ली या गुजरात ने मेवाड़ पर आक्रमण किया महाराणा रायमल जी ने जमकर लोहा लिया और कभी संधि नहीं की। किन्तु मेवाड़ में उत्तराधिकारी के लिए पिछली कई पीढ़ियों से आपसी संघर्ष चलता आ रहा था और जब महाराणा रायमल वृद्ध अवस्था की ओर बढ़ने लगे तब उत्तराधिकारी के लिए उनके तीन पुत्रों कुँवर पृथविराज (उड़ाना राजकुमार), कुँवर जयमल और कुँवर संग्राम सिंह में आपस में कलेश भी बढ़ने लगा। वैसे तो राजपूताना परंपरा के अनुसार इस पर हक तो बड़े बेटे का ही होना चाहिए किन्तु कुँवर पृथविराज बहुत कठोर व्यवहार के थे जिसकी वजह से दरबार के अन्य सदस्य और प्रजा नहीं चाहते थे कि वे राजा बने। इसी बीच तीनों राजकुमार अपनी कुंडली ज्योतिष को दिखाते हैं कुंडली देखकर ज्योतषी कहते है कुँवर संग्राम सिंह की कुंडली में राजयोग लिखा है अतः वे ही अगले महाराणा बनेंगे, जिस पर कुँवर पृथविराज क्रोधित हो जाते है और अपनी तलवार निकालकर राणा सांगा पर वार कर देते है अचानक हमले से राणा सांगा संभल नहीं पाते और उनकी एक आँख फूट जाती है उस समय उनके चाचा सारंगदेव बीच बचाव करके उनको समझाते है उसके बाद वे सब भीमल गाँव की एक पुजारिन के पास जाते है वह भी राणा सांगा को ही अगला महाराणा होने के राजयोग बताती है जिसे सुनकर कुँवर पृथविराज बहुत क्रोधित हो जाते है और राणा सांगा पर हमला कर देते है इस बार राणा सांगा तो संभल जाते है किन्तु बीच बचाव में उनके चाचा सारंगदेव की जान चली जाती है जिस वजह से राणा सांगा को वहाँ से निकलने के लिए थोड़ा समय मिल जाता है वे सेवांत्री गाँव में ठाकुर बिदा राठोर के यहाँ पहुंचते है कुंवर जयमल को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने सेना की एक टुकड़ी के साथ सेवांत्री गांव पर हमला कर दिया। हमले में बिदा राठोर के प्राण चले जाते है अब कुँवर संग्राम सिंह यहाँ से भी निकलकर अजमेर पहुंचते है जहाँ श्री करमचंद पँवार उनकी सहायता करते है
एक तरफ राणा सांगा अजमेर में तप कर लौहा बन रहे थे तो दूसरी तरफ मेवाड़ में उनके प्रतिद्वंदी एक-एक कर रास्ते से हट रहे थे। कुँवर जयमल को टोडा रियासत के शासक राव सुरतन द्वारा मार दिया गया था। असल में होता कुछ यूं है कि टोड़ा रियासत पर मांडू के सुल्तान कब्जा कर लेते है। जिसके लिए राव सुरतन घोषणा करते है कि जो भी उनकी रियासत वापस जीत कर देगा वो उस से अपनी बेटी की शादी कर देंगे। उनकी बेटी बेहद खूबसूरत तारा बाई थी, जयमल उनपे मोहित था उन्होंने राव सुरतन को कहा कि वो उनकी शादी तारा बाई से करवा दे। राव ने जयमल को शर्त याद दिलाई मगर जयमल ने शर्त सुनकर उनका और उनकी पुत्री का अपमान कर दिया, इस बात पर क्रोध में आकर राव सुरतन ने जयमल की हत्या कर दी।
अब जब ये खबर मेवाड़ आई तो वहां से उड़ाना राजकुमार प्रथ्वी राज मांडू गए और गयासुद्दीन से युद्ध कर टोड़ा वापस जीत कर राव सुरतन को सौंप दिया। शर्त के मुताबिक राव सुरतन ने अपनी बेटी ताराबाई की शादी उड़ाना राजकुमार से कर दी। ये वही ताराबाई है जिनके नाम पर अजमेर का किला तारागढ़ है, प्रथ्विराज ने अजमेर में एक किले का निर्माण करवाया जिसका नाम अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर रख दिया। कुछ समय पश्चात उड़ाना राजकुमार यानी पृथविराज अपनी बहन आनंदी बाई और उनके पति जगमाल के बीच आपसी कलह को शांत करने सिरोही जाते है। वहां जगमाल शुरू में उनसे डर कर माफी मांगता है कि वो आगे से ऐसा नहीं करेगा किन्तु प्रथ्विराज के वापसी के समय वो उसने अपनी असली चाल चल दी।
पृथविराज की वापसी के समय जगमाल उनको लड्डू में जहर मिलाकर बांध कर देता है जिनके सेवन से उनकी मृत्यु हो जाती है। प्रथ्वी राज, जयमल मारे जा चुके थे 1509 में महाराणा रायमल अपनी आखरी सांस गिन रहे थे और तब उन्होंने ऐलान किया कि अब राजगद्दी पर कुँवर संग्राम सिंह बैठेंगे।
साल 1509 में संग्राम सिंह यानी महाराणा सांगा मेवाड़ के 8वे महाराणा बने। महाराणा सांगा ने बाद में बूंदी रियासत से अच्छे संबंध बनाने के लिए वहां की राजकुमारी कर्णावती से विवाह किया। महाराणा बनते ही राणा सांगा ने मेवाड़ का सीमा विस्तार शुरू कर दिया मेवाड़ के अन्य शासकों की तरह उनका भी एक नियम था स्वाधीनता, वो भी किसी कीमत पर, वे मुस्लिम आक्रांताओं से कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे। उस दौर के राणा सांगा एक ऐसे शासक थे जिन्होंने पूरे हिंदुस्तान में हिन्दू साम्राज्यवाद का सपना देखा था जिस पर वे बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रहे थे किन्तु दुर्भाग्यवश उनका यह सपना अधूरा रह गया।
तो दोस्तों राणा सांगा के द्वारा लड़े गए युद्धों और उनके शासन काल के विषय में जानने के लिए ‘राणा सांगा भाग 2 अवश्य पढ़ें।
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