राणा सांगा (भाग 2)

 राणा सांगा भाग एक में हमने जाना कि किस प्रकार महाराणा रायमल के तीनों पुत्रों में राजगद्दी के लिए संघर्ष होता है और कुँवर पृथविराज यानी उड़ाना राजकुमार और कुँवर जयमल के मरने के बाद साल 1509 में राणा सांगा मेवाड़ के 8 वें महाराणा बने। जिस दौरान राणा सांगा गद्दी पर बैठे मेवाड़ चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हुआ था। मेवाड़ के शत्रुओं में भी आपस में किसी की नहीं बनती थी जिसका राणा सांगा ने भली भाँति फायदा उठाया और सबसे पहले उन्होंने मेवाड़ की सीमाओं को सुरक्षित किया।  उत्तर में उन्होंने बूंदी के आस पास दिल्ली से मेवाड़ के प्रवेश द्वार पर करमचंद पवार को तैनात कर दिया उन्होंने पवार को रावत की उपाधि देकर वहाँ की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी। उत्तर की सीमा मजबूत करने के बाद उन्होंने दक्षिण की सीमा को भी सुरक्षित किया इसके लिए उन्होंने सिरोही राज्य से दोस्ती की। सिरोही के साथ साथ बागड़ इलाके के राजा से भी अच्छे संबंध बनाए, राणा सांगा ने इडर के राजा भारमल को गद्दी से हटा कर अपने विश्वसनीय रायमल को गद्दी पर बैठा दिया। कहने को तो इडर गुजरात में है मगर वो मेवाड़ का हिस्सा था राणा सांगा की एक बड़ी ही अच्छी पहल थी जो उनके काम आई उन्होंने शासक बनते ही जितने भी राजपूताना के कमजोर राज्य थे उनको सहयोग देने की घोषणा की। इस वजह से छोटे मोटे राज्य उनके निकट आए और किसी भी परिस्थिति में साथ देने को राजी हो गए। इडर में जो राणा सांगा ने हस्तक्षेप किया था उस से गुजरात नाराज था उनका शासक उस समय महमूद बेगड़ा था लेकिन अब उनका नया शासक था सुल्तान मुज्जफर। 

राणा सांगा ( भाग - 3 )


मुज्जफर ने राय मल को इडर की गद्दी से हटाने के लिए सैन्य अभियान भेजने शुरू किए, पहले अभियान में निजाम उल मुल्क को भेजा जिसने इडर जीत कर रायमल को जंगल में छिपने पर मजबूर कर दिया, लेकिन रायमल ने कुछ समय बाद सेना एकत्रित करके वापस इडर जीत लिया। दूसरा सैन्य अभियान लेकर सुल्तान मुजफ्फर  ने जहीर उल मुल्क को भेजा जो असफल रहा और खाली हाथ लौट गया। अब तीसरा सैन्य अभियान लेकर आया 1520 में हुसैन अली और उसने इडर जीत लिया।

जब रायमल ने मेवाड़ जाकर महाराणा सांगा को यह बताया, तो राणा सांगा ने  इडर पर आक्रमण कर दिया। इडर से हुसैन अली भाग गया और अहमदनगर में छिप गया, राणा सांगा ने वापस इडर का राजा रायमल को बना दिया और उसके बाद उनकी सेना ने अहमदनगर को घेरकर आक्रमण कर दिया, जहाँ राणा सांगा हुसैन अली को मारकर वहां का खजाना, हाथी, घोड़े लूट कर वापस मेवाड़ आ गए। 

अब सुल्तान मुजफ्फर ने सीधा मेवाड़ पर आक्रमण करने का अभियान शुरू किया, जिसके लिए उसने सौराष्ट्र के जागीरदार मोहम्मद अयाज को अपने साथ मिला लिया और मेवाड़ पर हमला कर दिया। यहां सुल्तान के साथ धोखा हुआ मेवाड़ की शक्तिशाली सेना को देख उसके साथी अयाज ने राणा सांगा से संधि कर ली और पीछे हट गया। सुल्तान अब कमजोर पड़ गया तथा खाली हाथ गुजरात लौट आया। और दौबारा, कभी मेवाड़ पर आक्रमण नहीं किया।  

उसके बाद संघर्ष शुरू हुआ मेवाड़ और मांडू के मध्य। मांडू का शासक उस समय महमूद खिलजी द्वितीय था और उसका ख़ास आदमी था मेदिनी राय। महमूद खिलजी के कुछ खाँस लोगों को मेदिनी राय पसंद नहीं थे, इसलिए उन्होंने षड्यन्त्र रच के खिलजी को मेदीनी के खिलाफ कर दिया। मेदिनी राय वहाँ से जान बचा कर सीधे पहुंचे मेवाड़। महाराणा सांगा ने उनकी मदद की और एक विशाल सेना मांडू पर हमले के लिए मेदिनी को दी। मांडू जाकर परिस्थितियां देख कर सेना प्रमुखों ने हमला टालने की योजना बनाई।

 

महाराणा सांगा की स्वीकृति के बाद हमला टाल दिया गया और मेदिनी को उन्होंने उसी सीमा पर गागरोन और चंदेरी जागीर दे कर सुरक्षित कर दिया। ये बात खिलजी को पसन्द नहीं आयी और 1519 में उसने गागरोन पर आक्रमण कर दिया, उस युद्ध में महाराणा सांगा ने बड़ी बेरहमी से खिलजियों को मारा और पराजित किया। युद्ध में खिलजी का शहजादा आसफ खान मारा गया और खिलजी को कैदी बना लिया गया। लेकिन बाद में नरम दिल दिखाते हुए राणा सांगा ने खिलजी को रिहा कर दिया और भविष्य में कभी हमला ना करने की प्रतिज्ञा दिलवाई।

खिलजी की रिहाई के पीछे एक वजह यह भी थी के मांडू मेवाड़ से काफी दूर था और महाराणा सांगा नहीं चाहते थे कि उनकी सेना मांडू और मेवाड़ दोनों जगह रहे इस से दोनों कमजोर हो जाते। इसी वजह से महाराणा सांगा ने उदार हृदय दिखाकर खिलजी को छोड़ दिया, खिलजी भी इस बात से काफी खुश हुआ और उसने फिर कभी मेवाड़ पर आक्रमण नहीं किया। 

अब तक मेवाड़ ने गुजरात और मांडू को पराजीत कर दिया था मगर उसका असली संघर्ष अब शुरू होने वाला था जिस समय महाराणा सांगा मेवाड़ के महाराणा बने उस वक़्त दिल्ली का शासक था सिकंदर लोदी। सिकंदर ने कभी महाराणा सांगा  के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया था मगर उनके बाद सुल्तान बना इब्राहिम लोदी, जो महाराणा सांगा के सभी अभियानों पर नजर रखे बैठा था। उसने दो बार मेवाड़ से युद्ध किया और दोनों बार बुरी तरह से हारा।  

पहला युद्ध किया 1517 में खातोली में जो कि बूंदी रियासत का हिस्सा था और दूसरा युद्ध किया 1518 में धौलपुर में, ये दोनों ही युद्ध मेवाड़ जीता था। पहले युद्ध में एक भयंकर लड़ाई 5 घंटे के लिए लड़ी गई थी। सुल्तानत की सेना राजपूतों के विनाशकारी हमले के सामने टिक नही सकी और उसने सुल्तान और उसकी सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। इस लड़ाई में, राणा संगा ने तलवार से कट जाने के कारण एक हाथ खो दिया, और एक तीर ने उन्हे जीवन भर के लिए एक पैर से अपाहिज बना दिया। इस युद्ध में इब्राहिम लोदी के बेटे को बंदी बना लिया गया था और इस अपमान का बदला लेने के लिए 1518 में लोदी ने दूसरा युद्ध लड़ने के लिए मियां माखन और मियां हुसैन को बाड़ी धौलपुर में भेजा। इस युद्ध में भी मेवाड़ ने महाराणा सांगा के नेतृत्व में दिल्ली कि सेना को हराकर खदेड़ दिया।

अब दो युद्ध हारने के बाद दिल्ली की छवि खराब हो गई। भारत की अनेक छोटी बड़ी रियासते मेवाड़ के महाराणा सांगा को महत्तव देने लगे, उनको लगने लगा के अगर कोई व्यक्ति है जो भारत में हिन्दू सत्ता स्थापित कर सकता है तो वो है केवल महराना सांगा। इब्राहीम लोदी से दूसरी रियसते कन्नी काटने लगी और वो कमजोर हो गया, ये दो युद्ध भारत से लोदी  साम्राज्य को मिटा देने वाले युद्ध साबित हुए।

इब्राहीम लोदी के अधीन आने वाले सामंतों ने लोदी का विरोध किया और आजाद हो गए लोदी ने इस बात से नाराज़ हो कर उनको कुचलने की कोशिश की। लेकिन सामंतों ने एकता दिखाते हुए उसका मुकाबला किया और जब लगा के लोदी नहीं मानेगा तो उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के शासक बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया। निमंत्रण का मतलब साफ था के आप भारत आए और लोदी को हराकर यहां राज करे हम आपके साथ है।

फलस्वरूप 1526 में बाबर भारत आया और 21 अप्रैल को पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम लोधी को हरा कर दिल्ली सल्तनत पर कब्ज़ा कर लिया। 

तो दोस्तों बाबर का भारत आगमन तथा राणा सांगा और बाबर के बीच पूरे भारत में धाक जमाने के लिए खानवा में लड़े गए युद्ध के बारे में जानने के लिए  राणा सांगा भाग 3 अवश्य पढे।

विडिओ देखने के लिए नीचे 👇दिए गए लिंक पर क्लिक करें 

राणा सांगा (भाग- 2)