बाबर का भारत आगमन, 21 अप्रैल 1526 ई. में बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली में मुग़ल सल्तनत की नींव रखी।
पानीपत के युद्ध से पहले बाबर और राणा सांगा के बीच यह समझौता हुआ था कि राणा सांगा युद्ध में बाबर के सैन्य अभियान में सहायता करेंगे किन्तु बाद में जब राणा सांगा को यह ज्ञात हुआ कि बाबर इब्राहिम लोधी को हराकर लूटपाट करके वापस नहीं जाएगा अपितु भारत में ही शासन करेगा तो राणा सांगा ने बाबर का साथ नहीं दिया। अतः बादशाह बनने के बाद बाबर ने महाराणा सांगा पर संधि तोड़ने का आरोप लगा दिया। लेकिन इस आरोप से बाबर को कुछ लाभ नहीं हुआ, उल्टा युद्ध में बाबर की सहायता ना करके महाराणा सांगा ने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया, उन्होंने मांडू की ओर झालावाड़ में मौजूद अपनी सारी फौज वापस चित्तौड़ बुला ली और लोदी के कुछ इलाकों पर आक्रमण करके उन्हें हथिया लिया। जो जागीरें लोदी के अधीन थी बाबर की उनसे अच्छी तरह नहीं बनती थी और इसका महाराणा सांगा ने पूरा लाभ उठाया।
उन्होंने उन जागीरों पर आक्रमण करके अपनी सीमाएं बढ़ाना शुरू कर दिया। इन्हीं इलाकों में एक जागीर थी खंडार जो कि एक मुस्लिम इलाका था, जब राणा सांगा ने खंडार पर आक्रमण किया तो खंडार को बाबर की शरण में जाना पड़ा। और दिल्ली जा कर उन्होंने बाबर को उकसाया हालांकि बाबर पहले से सांगा पर नजर गड़ाए बैठा था। बाबर ने भी आसपास के इलाकों पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया सबसे पहले उसने धौलपुर को जीता, फिर भरतपुर और फिर ग्वालियर। भरतपुर इलाके की रियासत बयाना को बाबर ने दो बार आक्रमण करके जीता था उसने अपने खास इश्क आका को भेजा जिसको हारकर वापिस लौटना पड़ा। बाद में बाबर के जीजा मेहंदी ख्वाजा ने बयाना को जीत लिया और मुगल सल्तनत का हिस्सा बना लिया। और यह खबर जब महाराणा सांगा तक पहुँची तो उन्होंने एक विशाल सेना ले जाकर बयाना को घेर लिया। पीछे से बाबर ने किले में मौजूद मुगलों की सहायता के लिए और सेना भेजी मगर महाराणा सांगा की सेना ने उनको बुरी तरह से पराजित कर बयाना को अपने आधीन कर लिया। बयाना का युद्ध 16 फरवरी 1527 को खत्म हुआ और उसके बाद शुरू हुआ महाराणा सांगा और बाबर के बीच अपने-अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए युद्ध, जो कि एक विनाशकारी संघर्ष साबित हुआ। मुगल सेना जो हार कर लौटी थी उनका मनोबल गिर चुका था और ऊपर से बाबर को उसके खास लोगो ने उकसा दिया कि उसके ग्रह नक्षत्र सही नहीं है अगर वो अब मेवाड़ से युद्ध करेगा तो हार जाएगा। अब बाबर ने कुछ समय रुक कर अपनी सेना का खोया मनोबल वापस लाने का काम शुरू किया ताकि मेवाड़ से युद्ध कर सके। महाराणा सांगा यदि बयाना विजय के तुरन्त बाद एक हमला बाबर की फौज पर और करते, तो सम्भव था कि खानवा का युद्ध ही ना होता, क्योंकि उस वक्त बादशाही फौज के हौसले पस्त थे मुगल बादशाह बाबर ने अपनी बुलन्द आवाज़ से अपनी फौज की हौसला अफज़ाई की, बाबर के ये शब्द खानवा की लड़ाई में मौजूद लेखकों ने अपनी तवारीखों में ज्यौं के त्यौं दर्ज किए, जो कुछ इस तरह हैं - "हम मज़हबी तौर पर किए गए अपने तमाम गुनाहों से तौबा करते हैं - शराब पीना छोड़ते हैं, सोने-चाँदी के बर्तन फकीरों में लूटाते हैं और खुदा से अहद करते हैं कि अगर ये लड़ाई हम जीतते हैं, तो दाढ़ी मुंडाना और मुसलमानों से महसूल वसूल करना छोड़ देंगे | भागकर बेइज्जती के साथ जीने से तो मौत बेहतर है | तुम सबको कुरान की कसम है कि कोई भी मुंह नहीं फेरेगा | अगर लड़ाई में मरोगे तो शहीद होंगे और जिन्दा रहोगे तो गाज़ी कहलाओगे"। बाबर ने चतुराई से अपनी सेना का खोया मनोबल जिहाद यानी धर्म का वास्ता देकर जीत लिया अब उसने महाराणा सांगा के खिलाफ अपनी चाल चली। उसने रात के अंधेरे में कुछ सिपाहियों को आदेश दिया के वो काबुल के रास्ते पर चले जिस से महाराणा सांगा को लगने लगा के बाबर ने काबुल से और सेना बुला ली है। इसके विपरीत बाबर चुपचाप खानवा के मैदान में युद्ध की तैयारियों में लगा रहा उसने वहां अपनी तोप भिजवा दी और युद्ध नीति तैयार कर ली।
उधर मेवाड़ से महाराणा सांगा अपनी सेना सहित दिल्ली की ओर बढ़ चुके थे और 13 मार्च 1527 को वो खानवा पहुंचे। जहाँ बाबर पहले से मजबूत स्थिति में बैठा था उसने हर रण नीति तैयार कर ली थी, महाराणा सांगा के साथ उस दिन खानवा के मैदान में 7 बड़े राजा, 104 राव और कुछ अन्य छोटी जागीरें भी शामिल थी। महाराणा सांगा खानवा का युद्ध भी जीत जाते अगर गद्दार सलहदी तंवर राणा सांगा को धोखा देकर बाबर से नहीं मिलता, बाबर अपनी तोपों को खींचने के लिए चमड़े के पट्टे इस्तेमाल किया करता था, सांगा ने रणनीति बनाई थी कि हम पट्टों को काटकर तोपों पर कब्जा कर लेंगे लेकिन सलहदी तंवर ने राणा सांगा की रणनीति बाबर को बता दी जिसके कारण बाबर तोपों को खींचे जाने वाले चमड़े के पट्टों के भीतर लोहे की जंजीर डालकर ले आया। और बाबर ने अपनी तोपों के पास सेना की तादात भी बढ़ा दी जिस वजह से युद्ध के दौरान राणा सांगा की सेना बाबर की तोपों के आक्रमण को विफल नहीं कर सकी, वो कहते है ना कि “ पेड़ के कटने का किस्सा ना होता, अगर कुल्हाड़ी के पीछे लकड़ी का हिस्सा ना होता”। खानवा के मैदान में 17 मार्च 1527 को सुबह 9 बजे महाराणा सांगा और बाबर के बीच युद्ध शुरू हुआ और शाम होते होते महाराणा सांगा बुरी तरह हार चुके थे, वो खुद बुरी तरह से घायल हो गए उनकी सेना तित्तर बित्तर हो गई थी। इस युद्ध में कई बड़े योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए, महाराणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए। महाराणा सांगा जब तीर लगने से बेहोश हुए तब उनको अखेराज दुडा मैदान से सुरक्षित निकाल कर दौसा लेकर चले गए। उस समय महाराणा सांगा की जगह किसी एक को मेवाड़ का राज चिह्न धारण करके सेना का नेतृत्व करना था जिसके लिए सबने झाला अज्जा को चुना, उन्होंने मेवाड़ का राजचिहन धारण करके सेना की कमान संभाली और जब सेना को महाराणा सांगा की जगह कोई और उनका सेनापति बने दिखा तो उनका मनोबल टूट गया। सेना तीतर बितर होना शुरू हो गई मेवाड़ शाम का सूरज ढलने से पहले युद्ध हार गया। इस युद्ध के बाद बाबर ने बड़ी बेरहमी से वीरगति प्राप्त कर चुके राजपूतों के सर धड़ से अलग कर उनकी मीनार बनाई और खुद को मीनार के सामने खड़ा करके गाजी की उपाधि ली। जब महाराणा सांगा दौसा में बेहोशी की हालत से बाहर आए तो वो बेहद हताश एवं क्रोधित हो गए। उन्होंने अपमान का बदला लेने की प्रतिज्ञा ली। प्रतिज्ञा ये ली के वो जब तक बाबर को हरा नहीं देंगे ना चित्तौड़ जाएंगे ना ही पगड़ी पहनेंगे। उस दिन के बाद उन्होंने अपने सिर पर एक चीरा बांधना शुरू किया यानी एक भगवा कपड़े का टुकड़ा ताकि राजा का सिर किसी कपड़े से ढका रहे। उधर बाबर शांत नहीं बैठा उसने पूरे राजपूताने को जीतने की अगली योजना तैयार कर ली। उसने जनवरी 1528 में यानी खानवा की लड़ाई के कुछ महीने बाद चंदेरी की ओर कूच किया। चंदेरी में उस समय मेदिनी राय राजा थे वो खानवा के युद्ध में जिन्दा बच गए थे, अब एक बड़े युद्ध के बाद एक और हमला चंदेरी के लिए विनाशकारी था। उन्होंने महाराणा सांगा को ये बात बताई तो महाराणा सांगा भी बाबर से बदला लेने के लिये उनके साथ हो गए और रास्ते में पड़ने वाले कल्पी नाम के एक स्थान पर रुके और बाकी सामंतों को सूचना भेजी के वो उनके साथ युद्ध में आए। अब बाकी सामंत जो छोटे राज्यों से थे, उनके पास बहुत कम सेना थी वो एक बड़ा युद्ध बुरी तरह हारकर डरे बैठे थे। उनको लगा कि यदि वे दुबारा बाबर से हारे तो उनका विनाश निश्चित है और यदि वे राणा सांगा का साथ नहीं देंगे और राणा सांगा युद्ध जीत गये तो भी वो जीवित नहीं बचेंगे इसलिए उन्होंने अपने बचाव के लिए एक षड्यन्त्र रचा और योजना बनायी कि वे राणा सांगा को धोखे से मार देंगे। 30 जनवरी 1528 को सामंतों ने मिलकर धोखे से महाराणा सांगा के भोजन में जहर मिला दिया और इस तरह मेवाड़ का एक वीर योद्धा धोखे से मारा गया। राणा सांगा की इतनी बड़ी सेना युद्ध क्यूँ हारी, इतिहासकार इसके चार मुख्य कारण मानते है
पहला बयाना के युद्ध के बाद महाराणा सांगा को बाबर की सेना पर दुबारा आक्रमण करना चाहिए था उन्होंने बाबर को तैयारी के लिए समय दे दिया। क्योंकि बयाना के युद्ध में जब मेवाड़ जीता तो मुगल सेना का मनोबल टूट गया था दूसरा बाबर की तुलगमा युद्ध पद्धति। ये युद्ध पद्धति बाबर ने तुर्क लड़ाकों से सीखी थी इसमें दुश्मन सेना पर चारों और से आक्रमण किया जाता था जबकि महाराणा सांगा की सेना सामने से लड़ी पिछे या दाएं बाएं से कायरों की भांति नहीं। तीसरा तोपों और बंदूकों का इस्तेमाल बाबर के पास मजबूत और एक नया हथियार था तोप, जो उस समय तक मेवाड़ के पास नहीं था। इसके अलावा बाबर की सेना के पास बंदूकें थी जबकि महाराणा सांगा की सेना के पास तीर, तलवार और भाले। चौथा यह कि बाबर की सेना सुनियोजित थी अनुशासित थी जबकि महाराणा सांगा की सेना एक भीड़ समान थी जिसे महाराणा सांगा नियंत्रण में नहीं कर पा रहे थे।
इतिहासकारों का मानना है कि अगर राणा सांगा सामंतों द्वारा धोखे से नहीं मारे जाते तो शायद मुग़ल भारत में ज्यादा दिन नहीं टिक पाते और भारत का इतिहास संभवतः कुछ और ही होता।
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