भगवद् गीता 2

पहला श्लोक

                                                                          धृतराष्ट्र उवाच
                                                            धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:।
                                                            मामका: पाँड़वाश्चैव किमकुर्वत संजय।।
धृतराष्ट्र बोले-- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
प्रश्न--कुरुक्षेत्र किस स्थान का नाम है और उसे धर्मक्षेत्र क्यों कहा जाता है?
उत्तर-- महाभारत, वनपर्व के तिरासीवें अध्याय में और शल्य पर्व के तरेपनवें अध्याय में कुरुक्षेत्र के माहात्मय का विशेष वर्णन मिलता है; वहाँ इसे सरस्वती नदी के दक्षिण भाग और दृषद्वती नदी के उत्तर भाग के मध्य मे बतलाया है। कहते है कि इसकी लंबाई-चौड़ाई पाँच-पाँच योजन थी यह स्थान अंबाले से दक्षिण और दिल्ली से उत्तर की ओर है इस समय भी कुरुक्षेत्र नामक स्थान वहीं है। इसका एक नाम समंतपंचक भी है शतपथब्रह्मणादी शस्त्रों में कहा है कि यहाँ अग्नि, इन्द्र, ब्रह्मा आदि देवताओं ने ताप किया था अतः राजा कुरु ने भी यहाँ बड़ी तपस्या की थी तथा यहाँ मरने वालों को उत्तम गति प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त और भी कई बातें है, जिनके कारण उसे धर्मक्षेत्र या पुणयक्षेत्र कहा जाता है।  
भीष्म पितामाह के गिरने तक भीषण युद्ध का समाचार धृतराष्ट्र सुन ही चुके है, इसलिए उनके प्रश्न का यह तात्पर्य नहीं हो सकता कि उन्हे अभी युद्ध की कुछ भी खबर नहीं है और वे यह जानना चाहते है कि क्या धर्म क्षेत्र के प्रभाव से मेरे पुत्रों की बुद्धि सुधर गई और उन्होंने पांडवों का स्वत्व देकर युद्ध नहीं किया? अथवा क्या धर्म राज युधिष्ठिर ही धर्मक्षेत्र के प्रभाव से प्रभावित होकर युद्ध से निव्रत्त हो गए? या अब तक दोनों सेनाए खड़ी ही हैं, युद्ध हुआ ही नहीं और यदि हुआ तो उसका क्या परिणाम हुआ? इत्यादि!

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